ब्लैक फंगस (म्यूकरमायकोसिस)फैलने के कारण,कोरोना मरीजों के लिए ये क्यों इतना घातक साबित हो रहा है.
कोरोना के मरीजों में क्यों जानलेवा बन रहा ‘ब्लैक फंगस’ संक्रमण
ब्लैक फंगस(म्यूकरमायकोसिस)एक बेहद दुर्लभ संक्रमण है.ये म्यूकर फफूंद के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी,पौधों,खाद,सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है.ब्लैक फंगस की ये बीमारी हमारे बीच हजारों सालों से मौजूद है,पिछले 10 सालों में इसके गिने चुने मामले ही सामने आए हैं.
ये फंगस हर जगह होती है.मिट्टी में और हवा में यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी ये फंगस पाई जाती है.
ये फंगस साइनस,दिमाग़ और फेफड़ों को प्रभावित करती है
ये डायबिटीज़ के मरीज़ों या बेहद कमज़ोर इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों जैसे कैंसर या एचआईवी/एड्स के मरीज़ों में ये जानलेवा भी हो सकती है.
ब्लैक फंगस(म्यूकरमायकोसिस)में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है.
वर्तमान कोरोना काल में इसके इतने भयानक होने के दो मुख्य कारण मानें जा रहे है-
स्टेरॉयड का अंधाधुंध इस्तेमाल
मरीजों को दी जाने वाली ऑक्सीजन की शुद्धता का ख्याल ना रखना
स्टेरॉयड का अंधाधुंध इस्तेमाल
Covid-19 के इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल सही समय पर और सही मात्रा में होना चाहिए.कोरोना के शुरुआती दिनों में ही मरीज को इसे देने पर यह खतरनाक और हानिकारक हो सकता है. स्टेरॉयड केवल कोरोना के प्रभाव से लड़ने में प्रभावी होते हैं, ये सीधे तौर पर वायरस से नहीं लड़ते हैं.
स्टेरॉइड्स के इस्तेमाल से कोविड-19 में फेफड़ों में सूजन को कम किया जाता है और जब शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अतिसक्रिय हो जाती है तो उस दौरान शरीर को कोई नुक़सान होने से रोकने में मदद करते हैं.
लेकिन,steroids इम्यूनिटी कम करते है और डायबिटीज व बिना डायबिटीज़ वाले मरीज़ों को बेवजह स्टेरॉयड देने पर उसका शुगर लेवल बढ़ सकता है. माना जा रहा है कि ऐसे में इम्यूनिटी कमज़ोर पड़ने के कारणब्लैक फंगस(म्यूकरमायकोसिस) संक्रमण हो रहा है.
डायबिटीज़ से शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर हो जाता है,जबकी कोरोना वायरस रोगप्रतिरोधक तंत्र को तेजी से काम करने के लिए बाध्य करता है औरऐसी स्थिति में ज्यादा स्टेरॉइड्स आग में घी का काम करते हैं,क्योकि ये रोग प्रतिरोध तंत्र को और कमजोर कर देते है।
ऑक्सीजन की शुद्धता का ख्याल ना रखना- मेडिकल ऑक्सीजन (M O)और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में दिन रात का अंतर् होता है मेडिकल ऑक्सीजन को बनाने में कम्प्रेसन,फिल्ट्रेशन और प्युरीफ़ीकेशन का विशेष तौर पर खास ध्यान रखा जाता है तथा जिन सिलैंडरो में इस लिक्विड ऑक्सीजन गैस को भरा जाता है,उन्हें बहुत ही अच्छे तरह से धोकर कीटाणुरहित करके इनमे गैस भरी जाती है एवं मरीजों को देने से पहले इसका ह्यूमिडिफिकेश किया जाता है,इसके लिए कन्टेनर में स्टेरलाइज्ड वाटर ही भरा जाता है और उसे बार बार बदला भी जाता है
इस बात का ध्यान देने की जरूरत है कि ऑक्सीजन डिलीवरी से पहले ह्यूमिडिफिकेश के लिए बार-बार स्टेरलाइज्ड और डिस्टिल्ड वॉटर का ही इस्तेमाल किया जाए. कंटेनर के सभी डिस्पोजेबल हिस्से को बार-बार बदलना चाहिए
जबकि देखने में आ रहा है की कई जगह मरीजों को गंदे तरीके से ऑक्सीजन पहुंचाने का काम किया जा रहा है जिसकी वजह से भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़े हैं. कंटेनर का पानी स्टेरलाइज्ड ना करने पर ब्लैक फंगस की संभावना बढ़ जाती है.
ऑक्सीजन की क्वालिटी पर ध्यान देकर इस खतरे को कम किया जा सकता है.
ब्लैक फंगस के लक्षण-
नाक बंद हो जाना,नाक से ख़ून या काला तरल पदार्थ निकलना,आँखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना और आख़िर में अंधापन होना. मरीज़ के नाक के आसपास काले धब्बे भी हो सकते हैं. ये सभी ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) के लक्षण माने जाते हैं.
आईसीएमआर(ICMR) की एडवाज़री-
आईसीएमआर ने भी ब्लैक फंगस(म्यूकरमाइकोसिस) को लेकर एडवाज़री जारी की है.उसके अनुसार, इस संक्रमण के दौरान व्यक्ति को आँखों और नाक में दर्द होने,उसके आसपास की जगह लाल होने, बुख़ार,सिरदर्द,खाँसी और साँस लेने में दिक्कत आ सकती है.संक्रमित व्यक्ति को ख़ून की उल्टियां भी हो सकती हैं.
एंटीबायोटिक्स, एंटीफ़ंगल दवा और स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के ना करें.आईसीएमआर के अनुसार,अगर कोई म्यूकरमाइकोसिस से संक्रमित है तो उसे सबसे पहले अपने ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने की कोशिश करनी चाहिए और अगर व्यक्ति कोविड-19 से ठीक हो गया है,तब भी लगातार ब्लड शुगर की जाँच करनी चाहिए.अगर ऑक्सीजन ले रहे हों तो ह्यूमीडिफ़ायर के लिए साफ़ पानी (स्टेराइल वॉटर)का इस्तेंमाल करें.
डॉक्टर्स के अनुसार-अधिकतर मरीज़ उनके पास देर से आते हैं, तब तक ये संक्रमण घातक हो चुका होता है और उनकी आँखों की रोशनी जा चुकी होती है.ऐसे में डॉक्टर्स को संक्रमण को दिमाग़ तक पहुँचने से रोकने के लिए उनकी आँख निकालनी पड़ती है.कुछ मामलों में मरीज़ों की दोनों आँखों की रोशनी चली जाती है.
कुछ दुर्लभ मामलों में डॉक्टरों को मरीज़ का जबड़ा भी निकालना पड़ता है ताकि संक्रमण को और फैलने से रोका जा सके.ये बीमारी हजारो सालो से इंसान के साथ मौजूद है,इससे बचने का सबसे कारगर उपाय है,साफ सफाई का ख्याल रखे,खान पान पर विशेष ध्यान दे.लक्षण दिखते ही किसी सीनियर डॉक्टर से सलाह ले.