HARYANA ELECTION (हरियाणा राज्य ) चुनावी इतिहास में पहली बार बीजेपी ने लगातार तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर बनाया रिकार्ड,जाने चुनाव की मुख्य बाते।
HARYANA ELECTION-2024
भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा की राजनीति में इतिहास रचते हुए लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की है। 58 साल के इतिहास में भाजपा ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए राज्य की 90 में से 48 सीटों पर जीत दर्ज की है.हरियाणा राज्य के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी पार्टी ने लगातार तीन विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की हो.
लोक सभा चुनावो के कुछ महीनो बाद ही हुए विधानसभा चुनावो में जीत ने भारतीय जनता पार्टी के लिए संजीवनी बुटी जैसा काम किया है। उत्तर भारत में पिछले कुछ वर्षो से भारतीय राजनीती में तीन मुद्दे बहुत प्रभावी रूप से भारतीय जनता पार्टी को परेशान कर रहे थे और एक तरह से देखे तो कांग्रेस इन्ही तीन मुद्दों पर बीजेपी पर वार पर वार कर रही थी। ये तीन मुद्दे थे खिलाडी जवान और किसान और इन तीनो मुद्दों की उत्पति केंद्र और केंद्र बिंदु हरियाणा ही था ,
भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में ऐतिहासिक जीत हासिल कर इन तीनो मुद्दों पर बहुत हद तक काबू पा लिया है। कांग्रेस 99 सीट जीत कर जितनी ख़ुशी मना रही थी उससे दुगुना गम इन नतीजों ने उसे दिया है। क्योकी हरियाणा जीत से ही पार्टी के राजनेतिक रूप से वापसी का मार्ग प्रसस्थ हो रहा था। ये नतीजे ऐसे समय आए हैं, जब अगले महीने झारखंड-महाराष्ट्र में चुनाव की संभावना है। नए साल में दिल्ली और अंत में बिहार में चुनाव होंगे। महाराष्ट्र में सत्ता की चाबी ओबीसी, तो झारखंड में अनुसूचित जनजाति के पास है। दिल्ली में दलितों की बड़ी आबादी है तो बिहार की पहचान ही जातीय राजनीति से है।
HARYANA ELECTION 2024
इन नतीजों ने जहां बीजेपी खेमे में उत्साह भर दिया है वही कांग्रेस आज भी वही पुराने राग और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप में उलझी हुई है।
बीजेपी की जीत के मुख्य कारण-
मुख्यमंत्री चेहरा बदलना –
बीजेपी आलाकमान ने हरियाणा की जनता का मुंड भांपते हुए चुनावो से कुछ समय पहले ही मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बना कर खट्टर सरकार के प्रति जो जनमानस में नाराजगी थी उसे पार्टी के प्रति बनने से रोक लिया। प्रॉपर्टी आई डि मामले में आमजन बहुत आक्रोश में था जिसका सीधा असर इन परिणामो में देखने को मिलता,लेकिन सैनी सरकार ने जनता से जुड़े फैसले लेने में जो तत्परता दिखाई उसने पिछले साढ़े नौ सालो की नाराजगी को कम करने का काम किया उन्होंने 56 दिन में 125 से ज्यादा ऐतिहासिक निर्णय लेकर लोगों में विश्वास जगाया कि उन्हें भी एक बार मौका मिलना चाहिए।
जातीय समीकरण पर काम –
हरियाणा की राजनीति में बहुत लम्बे समय तक जाटो का दबदबा रहा है,बीजेपी ने इस चीज का फायदा उठाते हुए हरियाणा में जाट बनाम नॉन जाट पर काम किया ,हरियाणा में क़रीब 22 फ़ीसदी जाट वोट हैं जो काफ़ी खुलकर अपनी बात रखते हैं.”ग़ैर जाटों को लगा कि कांग्रेस के जीतने पर भूपिंदर सिंह हुड्डा ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बनेंगे उन्होंने ख़ामोशी से बीजेपी के पक्ष में वोटिंग कर दी है. “हरियाणा में इस बार के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा ही मुख्यमंत्री जाट और ग़ैर जाट रहा, जिसका सीधा नुक़सान कांग्रेस को हुआ है।
नेताओ के बिगड़े बोल–
चुनावो में जुबानी जंग होना आम बात है लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के उम्मीदवारो ने गैर जिम्मेदाराना ब्यान दिए उससे आम जन मानस उनसे दूर चला गया ,मामन खान का मेवात में देख लेने वाला बयान हो,समशेर गोगी का घर भरने वाला बयान हो या फिर फरीदाबाद से शर्मा का नौकरीयो में बंदरबाट वाला बयान हो सब ने आम जनता को कांग्रेस से दूर करने का काम किया,मामन खान के बयान पर तो मेवात क्षेत्र के आस पास के हिन्दू समाज ने वोटो को एक मुश्त बीजेपी की झोली में डाल दिया परिणाम कोंग्रेसी नेताओ अनुसार 4 से 5 सीट हार गए ,कांग्रेस के बड़े नेता कैप्टेन अजय यादव ने तो मामन खान से सार्वजानिक रूप से माफ़ी मांगने तक की बात कही है।
भाजपा ने इन नेताओ के वीडियो को अपने चुनाव प्रचार में शामिल किया। दस साल की सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद भाजपा ने कांग्रेस के दस साल के शासन काल में दलितों पर हुए अत्याचार व भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को ही घेर दिया। इस मुद्दे को कांग्रेस काउंटर भी नहीं कर पाई। कांग्रेस सिर्फ भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर ही निर्भर होकर रह गई और भाजपा की किसी रणनीति का ठोस जवाब नहीं दे सकी।
सीटों का बँटवारा–
बीजेपी ने इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए थे.इनमें 16 उम्मीदवारों ने जीत हासिल कर ली. बीजेपी अपनी पुरानी 26 सीटें बचा पाने में भी कामयाब रही है जबकि उसके क़रीब 22 नई सीटों पर जीत हासिल की है.
दूसरी तरफ “कांग्रेस ने अपने किसी मौजूदा विधायक का टिकट नहीं काटा और उसके आधे उम्मीदवारों की हार हो गई. उम्मीदवारों को नहीं बदलना भी कांग्रेस के लिए बड़ा नुक़सान साबित हुआ है.”
इस साल हुए लोकसभा चुनावों में हरियाणा में कांग्रेस को 43 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि बीजेपी ने 46 फ़ीसदी वोट मिले थे. यानी दोनों प्रमुख दलों के बीच वोटों का अंतर काफ़ी कम रहा था.
कांग्रेस में गुटबाज़ी-
हरियाणा में कांग्रेस की हार के पीछे पार्टी के अंदर की गुटबाज़ी भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है. जानकार मानते हैं कि राज्य में कांग्रेस के उम्मीदवारों को इस तरह से भी देखा जा रहा था कि कौन भूपिंदर सिंह हुड्डा के खेमे से है कौन कुमारी शैलजा के क़रीबी है.और कौन आलाकमान यानी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का उम्मीदवार है
हरियाणा में गुटबाज़ी और ग़लत तरीके से टिकट बाँटने की वजह से कांग्रेस को क़रीब 13 सीटें गंवानी पड़ी हैं. इनमें भूपिंदर सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और कांग्रेस आलाकमान की पसंद के उम्मीदवार भी शामिल हैं.टिकट वितरण से लेकर पुरे हरियाणा में चुनाव प्रचार में भूपेंदर हुड्डा और दीपेंदर हुड्डा को तवज्जो देना शीर्ष नेतृत्व की सबसे बड़ी चूक थी ,इससे दूसरे बड़े नेताओ में असंतोष पनपा और प्रचार की बजाय आपसे में ही आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया ,बीजेपी ने इस मौके का खूब फायदा उठाया।
यहां तक कहा जाने लगा था कि कांग्रेस के कई नेताओं का ध्यान चुनावों से ज़्यादा, चुनाव जीतने के पहले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर था.
दलित वोटरों की कांग्रेस से दूरी-
दलित वोट कांग्रेस का परंपरागत वोट है जो हमेशा ही कांग्रेस को दिल खोल कर वोट देता है जिसके बल पर ही कांग्रेस ने कई बार जीत का स्वाद चखा है हरियाणा में एक अनुमान के मुताबिक करीब 21प्रतिशत दलित वोट है ,जो किसी भी दल को सत्ता में लाने और उतारने का मादा रखते है लोक सभा चुनावो में दलित वोट बैंक ने बड़ा हिस्सा कांग्रेस के खाते में दिया था उसका मुख्य कारण था
कांग्रेस द्वारा ये दुस्प्रचार किया जाना की बीजेपी सत्ता में आती है तो सविंधान और आरक्षण को ख़म कर देगी।
परिणाम स्वरुप 10 लोकसभा सीट में से कांग्रेस इन वोटो की बदौलत 5 सीट हासिल करने में कामयाब रही लोकसभा चुनावों में बीजेपी को राज्य की क़रीब 44 विधानसभा सीटों पर सबसे ज़्यादा वोट मिले थे जबकि कांग्रेस 42 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही थी. इस लिहाज़ से भी दोनों दलों के बीच अंतर काफ़ी छोटा रहा था. लेकिन मौजूदा विधानसभा चुनाव में यह वोट कांग्रेस से दूर जाता दिखा है.इस साल हुए लोकसभा चुनावों में हरियाणा में कांग्रेस को 43 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि बीजेपी ने 46 फ़ीसदी वोट मिले थे. यानी दोनों प्रमुख दलों के बीच वोटों का अंतर काफ़ी कम रहा था.
2019 चुनाव में 17 आरक्षित सीटों में से महज पांच सुरक्षित सीट जीतने वाली भाजपा को इस बार आठ सीटों पर जीती मिली है
इस साल के लोकसभा चुनावों में मायावती की बीएसपी को हरियाणा में महज़ एक फ़ीसदी के क़रीब वोट मिले थे. मौजूदा विधानसभा चुनाव में उसने राज्य में अपने वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी की है.
बीजेपी का माइक्रो मैनेजमैंट–
जानकारों के मुताबिक नतीजों पर ग़ौर करें तो 10 से ज़्यादा सीटों पर छोटे दल या निर्दलीय उम्मीदवार कांग्रेस की हार के पीछे बड़ी वजह रहे हैं. बीजेपी ने जहां हर बूथ हर विधानसभा के लिए अलग रणनीति बनाई जहां लगा के बीजेपी के नाम पर वोट बिखर सकते है वहां निर्दलीय उम्मीदवारो के रूप में विकल्प दिया। परिणाम स्वरुप हुड्डा के जाट लेंड में भी हुड्डा को पटखनी दी।
इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं हरियाणा में बीजेपी ने ग़ैर जाट वोटों पर ध्यान देकर बड़ी चतुराई से उन्हें साधा है. इसका सीधा असर यह हुआ है कि हुड्डा के गढ़ सोनीपत की पाँच में से चार सीटों पर कांग्रेस की हार हो गई.
वही कांग्रेस इस चुनाव में बिल्कुल बिखरी और सिर्फ हुड्डा जी के जाट चेहरे के भरोसे बैठी रही उसे लगा की 10 साल की सत्ता विरोधी लहर किसान खिलाडी और जवान उसे घर बैठे जितवा देंगे।
इन चुनावो की मुख्य बाते –
पार्टी सीटें/मत प्रतिशत सीटें/मत प्रतिशत सीटें/मत प्रतिशत
2014 2019 2024
भाजपा 47/33.2 40/36.49 48/39.94 (+3.45)
कांग्रेस 15/20.6 31/28.08 37/39.09 (+11.01)
इनेलो 19/24.1 1/2.44 2/4.14 (+1.7)
जजपा — 10/14.80 0/0.90 (-13.9)
आप — — 0/1.79
बसपा 1/4.4 0/4.21 0/1.82 (-2.39)
भाजपा की जीत के पांच बड़े कारण
1. 25 टिकट बदलना उनमें 16 प्रत्याशी जीते
2. खट्टर की जगह नायब सैनी को सीएम बनाने का दांव कामयाब रहा
3. जाट वर्सेज गैर-जाट फॉर्मूला कामयाब रहा बिना पर्ची-खर्ची के नौकरी का नारा असर दिखा गया
4. जजपा का जनाधार टूटा, भाजपा को फायदा मिला
5. कांग्रेस की 70 सभाओं पर भाजपा की 150 रैलियां भारी रही
कांग्रेस की हार के पांच बड़े कारण
1. कांग्रेस केवल माहौल के भरोसे रही,लेकिन बूथ मैनेजमेंट में पिछड़ी
2. अति उत्साह और दलित कार्ड का नुकसान सबसे ज्यादा झेलना पड़ा
3. हुड्डा के भरोसे रहना, उन्हें अपनी मनमानी करने देना और दूसरे किसी नेता को तरजीह न देना पड़ा भारी
4. हरियाणा में दस साल से संगठन का ना होना जिलाध्यक्ष तक नहीं है कांग्रेस के
5. प्रत्याशियों का चयन में भी गुटबाजी का बोलबाला।
तीसरे दलों की भूमिका समाप्त
दुष्यंत चौटाला
इस बार चुनाव में मतदाताओं ने तीसरे दल की भूमिका खत्म कर दी है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के खाते में सिर्फ दो सीटें आई हैं। रानिया में इनेलो के अर्जुन चौटाला और डबवाली में आदित्य देवीलाल चौटाला ने जीत दर्ज की है। चौटाला परिवार के सात सदस्य मैदान में उतरे थे लेकिन इनेलो के दिग्गज अभय चौटाला तक हार गए।
2019 में किंगमेकर बनकर उभरी जजपा का वोट बैंक इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में बंट गया। जजपा को पिछली बार 14.9 फीसदी मत मिले था। इस बार उसका मत प्रतिशत मात्र 0.90 फीसदी ही रह गया जननायक जनता पार्टी (जजपा) और आम आदमी पार्टी (आप) का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया। दोनों दल का कोई भी उम्मीदवार दूसरे नंबर पर भी नहीं आ सका।
इनेलो के साथ मिलकर लड़ रही बसपा भी सिर्फ एक अटेली सीट पर टक्कर दे पाई। जजपा के साथ मिलकर लड़ रही आजाद समाज पार्टी को भी मतदाताओं ने तवज्जो नहीं दी। तीन निर्दलीय भी जीते हैं। कांग्रेस से बगावत करने वाले बहादुरगढ़ से राजेश जून और भाजपा की बागी हिसार से सावित्री जिंदल व गन्नौर से देवेंद्र कादियान निर्दलीय विधानसभा पहुंचे हैं।
नायब सिंह सैनी जहां से भी लड़े जीते
कुरुक्षेत्र की लाडवा विधानसभा सीट से सीएम नायब सिंह सैनी ने करीब 16 हजार मतों से जीत हासिल की। दस साल में यह उनका चौथा चुनाव था। पहले वह नारायणगढ़ से विधायक चुने गए। उसके बाद वह कुरुक्षेत्र से सांसद और फिर करनाल से विधायक। अब फिर से लाडवा से विधायक चुने गए हैं। उनका दोबारा सीएम बनना तय माना जा रहा है। पीएम मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपनी रैलियों में कहते रहे हैं कि सैनी ही दोबारा सीएम बनेंगे।
56 साल बाद ढहा भजनलाल का गढ़
1967 से भजनलाल परिवार के अभेद्य दुर्ग आदमपुर को कांग्रेस ने ढहा दिया। कांग्रेस के चंद्रप्रकाश ने भाजपा प्रत्याशी और भजनलाल के पौत्र भव्य बिश्नोई रो 1268 वोटों से हरा दिया।
रिकॉर्ड जीत के बावजूद सैनी कैबिनेट के आठ मंत्री हारे
भाजपा की रिकॉर्ड जीत के बावजूद नौ मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा है। सिर्फ दो मंत्रियों को जीत हासिल हुई। इनमें सैनी कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ कृषि मंत्री कंवर पाल गुर्जर जगाधरी, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कमल गुप्ता हिसार, बिजली मंत्री रणजीत चौटाला रानियां, वित्त मंत्री जयप्रकाश दलाल लोहारू, परिवहन मंत्री असीम गोयल अंबाला, निकाय मंत्री सुभाष सुधा थानेसर, सिंचाई मंत्री अभय सिंह यादव नांगल चौधरी और खेल मंत्री संजय सिंह नूंह विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता को पंचकूला सीट से हार का सामना करना पड़ा है। सिर्फ दो ही मंत्री चुनाव जीत पाए हैं। बल्लभगढ़ सीट से मूलचंद शर्मा और पानीपत ग्रामीण सीट से महिपाल ढांडा चुनाव जीत पाए।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व नौ विधायक भी नहीं जीत पाए
भाजपा की जीत की आंधी में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व सात मौजूदा विधायक भी चुनाव हार गए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान,कांग्रेस विधायक सुरेंद्र पंवार,जगबीर मलिक, नीरज शर्मा,जयवीर वाल्मीकि,राव दान सिंह,चिंरजीव राव,धर्म सिंह छौक्कर,बलबीर वाल्मीकि,मेवा सिंह, शमशेर गोगी और अमित सिहाग अपना चुनाव हार गये
चार सीटों पर आप ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
बहुमत से दूर रही कांग्रेस का खेल आम आदमी पार्टी ने भी बिगाड़ा है। लोकसभा चुनाव में आप के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को पांच सीटें मिली थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में आप के साथ गठबंधन नहीं होने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। उचाना, डबवाली, रानियां और असंध में कांग्रेस प्रत्याशियों की हार उतने मतों से हुई है, जितने वोट आप को मिले हैं।
इनकी हार ने चौंकाया
इनेलो प्रमुख अभय सिंह चौटाला, हरियाणा लोकहित पार्टी प्रमुख गोपाल कांडा, पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला, बृजेंद्र सिंह, उदयभान, ओपी धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु, बलराज कुंडू, मनीष ग्रोवर, भव्य बिश्नोई, सुनीत दुग्गल।
चौंकाने वाली जीत
उचाना से बृजेंद्र सिंह को हराने वाले भाजपा के देवेंद्र अत्री, बहादुरगढ़ से कांग्रेस के बागी राजेश जून, बाढड़ा में पहली बार भाजपा का खाता खोलने वाले उमेद पातुवास, पूंडरी से भाजपा प्रत्याशी सतपाल जांबा, लोहारू में भाजपा के कद्दावर मंत्री जेपी दलाल को हराने वाले राजदीप फरटिया, गन्नौर से भाजपा के बागी देवेंद्र कादियान, फरीदाबाद एनआईटी में पहली बार भाजपा का खाता खोलने वाले सतीश फागना, महेंद्रगढ़ से कांग्रेस के राव दान सिंह को हराने वाले भाजपा के कंवर सिंह यादव।
सबसे उम्रदराज व सबसे युवा विधायक
विधानसभा में सबसे उम्रदराज कांग्रेस के विधायक 80 वर्षीय डॉ. रघुबीर कादियान होंगे। वो सातवीं बार बेरी विधानसभा सीट से चुने गए हैं। वहीं, सबसे कम उम्र के विधायक कैथल से कांग्रेस के 25 वर्षीय आदित्य सुरजेवाला चुने गए हैं।
सबसे बड़ी जीत, सबसे छोटी जीत
फिरोजपुर झिरका से कांग्रेस विधायक मामन खान ने सबसे बड़ी जीत हासिल की। मामन खान ने 98441 वोटों से जीत हासिल की है। जबकी सबसे छोटी जीत उचाना कलां से भाजपा के देवेंद्र अत्री की मात्र 32 वोटों से हुई।
विज और कादियान सातवीं बार चुने गए
15वीं विधानसभा में दो ऐसे विधायक चुनाव आए हैं, जिनकी सातवीं जीत है। इनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री अंबाला कैंट से चुने गए विधायक अनिल विज और बेरी से कांग्रेस के विधायक व पूर्व स्पीकर रघुबीर कादियान हैं।
दोबारा बनाया रिकॉर्ड, 13 महिलाएं पहुंचीं विधानसभा
इस बार 101 महिला प्रत्याशियों में से 13 ने जीत दर्ज की है। इसमें कांग्रेस की सात, भाजपा की पांच और एक निर्दलीय है। इससे पूर्व 2014 में भी 13 महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। पटाैदी से भाजपा की बिमला चाैधरी ने 46 हजार से अधिक वोटों से सबसे बड़े अंतर से जीत दर्ज की है
पांच मुस्लिम विधायक चुनाव जीते
हरियाणा में पांच मुस्लिम विधायक भी चुनाव जीते है।ये पांचों विधायक कांग्रेस के हैं। इनमें नूंह से आफताब अहमद, फिरोजपुर झिरका से मामन खान, पुन्हाना से मोहम्मद इलियास, हथीन से मोहम्मद इसराइल और जगाधरी से अकरम खान शामिल हैं।
पूंडरी में पहली बार भाजपा का खाता खुला
कैथल जिले की पूंडरी सीट पर पिछले छह चुनावों से चला आ रहा इतिहास भाजपा की जीत ने बदल दिया। इस सीट पर लगातार छह चुनावों से निर्दलीय जीतते आ रहे थे। इस बार भाजपा के सतपाल जांबा जीते हैं। उन्होंने निर्दलीय सतबीर भाणा को 2197 वोटों से हराया।