कोरोना काल में पतंजलि और आयुष मंत्रालय का विवाद क्या मानव जाति के लिए उपयुक्त है? क्या इस छोटे से विवाद से पतंजलि के देश की आयुर्वेदिक पद्धति के प्रति योगदान को भुलाया जा सकता है .




कोरोना जिसका आजतक पूरी दुनिया मिलकर भी इलाज नहीं ढूंढ पायी है,इस बिमारी ने 21वी सदी जिसमे इंसान मंगल तक पहुंच रहा है,चाँद पर बस्ती बसाने की बाते कर रहा है को पुन पुरातन के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है। 
आज स्वास्थ्य  क्षेत्र में कितने भी बड़े बड़े दावे किये जाए,लेकिन आज भी नयी सदी की स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना जैसी महामारी के सामने लाचार और बेबस नजर आ रही है.
कोरोना को प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ करने पर प्रकृति द्वारा मानव जाति को दंडित किये जाने के स्वरुप से भी देखा जा सकता है.
आप देखिये कोरोना से सबसे ज्यादा पीडित और सबसे ज्यादा मौत शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग है,जो प्राकृतिक रूप से रह रहे है,उन पर कोरोना का असर ना के बराबर है।

कोरोना (corona)का व्यवसायीकरण- 

कोरोना पहले एक महामारी के रूप में जनमानस के सामने आयी थी,लेकिन इस महामारी में भी लोगो ने दया भावना को छोड़ अब इसका व्यवसायी करण कर दिया है,आज बड़े बड़े हॉस्पिटल कोरोना के पैकेज घोषित कर रहे है ,कोई 3 लाख तो कोई 5 लाख तक की मांग कर रहा है.अब समझ में ये नहीं आता की  जब पुरे संसार में कोरोना की कोई पुख्ता दवाई बनी ही नहीं है तो ये हॉस्पिटल कैसे मरीज को ठीक करेंगे।

 भारत (india)में कोरोना की दवाई- 


भारत में कोरोना को लेकर 3 दवाइयाँ प्रयोग के लिए सामने आयी है ,जिनमे 2तो अंग्रेजी (allopathy)की है और एक बाबा रामदेव की आयुर्वेदिक(ayurvedic) कोरोनिल है,जो अभी बाजार में नहीं आयी है,लेकिन विवादो में जरूर आ गयी है. 

 जिस देश को आयुर्वेद का जनक माना जाता है,जिस देश ने आयुर्वेद को कई सदीयो तक अपनाया है,उसका  प्रयोग किया है,और शत प्रतिशत परिणाम लिया है,अगर उसी देश में आयुर्वेद पर अंगुली उठती है तो ये बड़े दुर्भाग्य की बात है।


आज जिस पतंजलि (patanjali )पर अंगुली उठायी जा रही है ,इसी पतंजलि ने लाखो करोडो लोगो को पुरे  संसार में नयी जिंदगी भी दी है,जिस योग का हम नाम भूल गए थे,आज विश्व में इस प्राचीन भारतीय धरोहर को पहचान दिलायी है,इलाज के नाम पर एलोपैथी  उपचार जिस में इलाज कम लूट ज्यादा है से करोडो लोगो को बचाया है . 

भारत सरकार का आयुष मंत्रालय कोरोना के शुरुवाती दौर से ही आयुर्वेदिक रूप से बना काढ़ा पीकर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कोरोना से बचने के विज्ञापन पर करोड़ो खर्च कर रहा था.और आज आयुर्वेद के आधार पर निर्मित दवा के विवाद का कारण बन रहा है।

सभी जानते है की आयुर्वेद में किसी भी दवाई के साइड इफ़ेक्ट ना के बराबर होते है,इस आधार पर पतंजलि की दवाई से मानव हानि की बात करना बेमानी है। इस दवाई में सब पुरानी और आजमायी हुई औषधीयो को ही समाहित किया गया है।  



आयुष मंत्रालय कहता है की वो इसकी जांच करेंगे की ये कोरोना के इलाज में उपयुक्त है या नहीं ,जबकि संसार में अभी इस तरह का कोई पैमाना ही नहीं बना है की जो बता सके की ये दवाई कोरोना के इलाज में बिलकुल सही है या नहीं,सारे संसार में अभी भी इस पर सिर्फ रिसर्च ही की जा रही है।


 हो सकता है की कोई कागजी कार्यवाही में त्रुटि हो, जिन्हे पुरा ना किया गया हो ,लेकिन इस वक़्त जब कोरोना भारत में विकराल रूप धारण कर रहा है,
एक उम्मीद को तोडना क्या जायज है,जिस पद्ति पर भारत सदियों से विश्वास करता आया है,उस पर अंगुली उठाना क्या जायज है, इस मामले को तुल देने की बजाय इस पर और रिसर्च कर आयुष मंत्रालय कोई और ब्रेह्तर विकल्प पर काम करता तो ये देश व समाज हित में होता। 
इस में सबसे खास बात ये थी की इसकी किमत जो हर आदमी तक इसकी पहुँच को बनाती है व गरीब वर्ग के लिए रामदेव बाबा के अनुसार ये बिल्कुल मुफ्त में भी उपलब्ध होगी।

 आज इस दवा और विवाद पर ताजा अपडेट ये है की आयुष मंत्री श्रीपद नाइक ने कहा है “जब तक अंतिम मंजूरी न मिले, उन्हें (पतंजलि आयुर्वेद) अपनी दवा (कोरोनिल) का प्रचार नहीं करना चाहिए। हमने उनसे कुछ प्रक्रियाएं पूरी करने को कहा है। उन्होंने हमारे पास दवा भेजी है, जल्द ही इस पर फैसला लिया जाएगा।” इससे पहले नाइक ने कहा था कि बाबा रामदेव ने देश को नई दवा दी है, यह अच्छी बात है। लेकिन नियम के अनुसार पहले इसे आयुष मंत्रालय में जांच के लिए देना होगा.


इस के जवाब में पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि हमने कोरोनिल का प्रचार नहीं किया। सिर्फ लोगों को इसके नतीजे बताए हैं। सभी प्रक्रियाओं का पालन किया। दवा में इस्तेमाल हुए कम्पाउंड्स के साक्ष्य के आधार पर लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। हमने कम्पाउंड्स पर काम किया और लोगों के सामने क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे रखे हैं,
आज कोरोना महामारी के वक़्त ये विवाद मानव जाति के लिए नुक्सान दायक है,मंत्रालय को इस पर जल्दी से जल्दी ध्यान देकर इस विवाद को सुलझाना चाहिये। 
क्योकि अंगुलिया आयुष मंत्रालय पर भी उठ रही है की,दवा माफियाओ के दबाव में ये विवाद पैदा किया गया है। मंत्रालय को इस पर जल्द निर्णय लेकर 600 बनाम 6 लाख के इलाज पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये





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