पंजाब कांग्रेस में घमासान ,जल्द कोई रास्ता ना निकला तो आगामी विधानसभा चुनावो में हो सकता है नुकसान


पंजाब कांग्रेस में नूरा कुश्ती 

पंजाब में कांग्रेस के नेता इन दिनों महामारी से निपटने के बजाय आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नूरा कुश्ती में ज्यादा उलझे हुए नजर आ रहे हैं।जब से कैप्टन साहब ने अगला चुनाव लड़ने और खुद को सीएम प्रोजक्ट करने का एलान किया है,तब से ही पंजाब कांग्रेस में आरोप प्रत्यारोप का खेल शुरू हो गया है जो बड़े सपने सजोये बैठे थे उन्हें अब  कैप्टन के रहते अपनी दाल गलती नजर नहीं आ रही है । इसलिए एक बार फिर बेअदबी की घटना के बाद हुए गोलीकांड और नशे जैसे मुद्दों के जिन्न राजनीति की बोतल से बाहर निकले हैं।


अमरिंदर सिंह 

सबसे पहले विधायक व पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने बेअदबी के मुद्दे पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कैप्टन पर हमला बोला है उनका साथ देते हुए सांसद प्रताप सिंह बाजवा व विधायक परगट सिंह भी कैप्टन साहब पर हमलावर नजर आ रहे है। 

कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा का कहना है कि वे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से वही मांग कर रहे हैं, जो उन्होंने 2017 के चुनाव में गुटखा साहिब हाथ में रख कर वायदा किया था। यह वादे थे

बेअदबी कांड के दोषियों को सजा दिलवाना, 

ड्रग्स को खत्म करना। 

हम मुख्यमंत्री से ये ही तो मांग कर रहे हैं कि बेअदबी के दोषियों को सजा दिलवाई जाए। मुख्यमंत्री को 45 दिन का समय दिया गया है। यह समय जुलाई के पहले सप्ताह में खत्म होगी और तब तक मुख्यमंत्री को अपने वायदे पूरे कर लेने चहिए। बाजवा का कहना है, हम न तो कैप्टन के खिलाफ हैं न ही उनकी सरकार के। लोगों में कांग्रेस की विश्वनीयता बनी रहे इसलिए मुख्यमंत्री को अपना वायदा पूरा करने के लिए कह रहे है। 

दावा किया जाता है कि सिद्धू के इन तीखे तेवरों में उनके साथ सात विधायक व दो मंत्री हैं। कैप्टन के खिलाफ माहौल बनता देख राणा गुरजीत, सुखजिंदर रंधावा और सुरजीत धीमान जैसे नेता नशे के मुद्दे पर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करते नजर आ रहे है 


नवजोत सिंह सिंधु 

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 पंजाब में ये नूरा कुश्ती पंजाब की जनता को इंसाफ के लिए है या केवल सियासी खेल यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

 आरोपों-प्रत्यारोपों में उलझे इन नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने यह नसीहत दी है की आपदा में अवसर न तलाशें,यह समय कोरोना से लड़ने का है।पार्टी प्रभारी हरीश रावत ने तो इस पुरे मसले पर बिल्कुल चुप्पी साध रखी है, 

आलाकमान,जिसे अभी तक कैप्टन को साधने  में ही बहुत मुश्किल होती थी,उसके सामने अब दूसरी व तीसरी पंक्ति के नेता भी आ खड़े हुए हैं। 

कैप्टन साहब अपना सारा ध्यान कोरोना से लड़ने में लगाना चाहते है,इधर उनके असन्तुष्टो की भीड़ बढ़ती जा रही है,आज उन्हें दो मोर्चो पर एक साथ लड़ना पड रहा है,आज किसान आंदोलन का नतीजा यह हुआ कि किसान धरनों-प्रदर्शनों में जाते रहे और वहां से कोरोना भी गांवों की राह पकड़ता गया,अभी तक पंजाब में इससे मृत्यु की दर देश की दर से ज्यादा है। 
 सरकार को ये पता है  कि हालात काबू में तभी आएंगे जब गांव संभलेंगे। अभी तक ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में लोग टेस्टिंग ही नहीं करवा रहे थे। ग्रामीण कहीं नाराज न हो जाएं इस वजह से कोई सख्ती भी नहीं की गई। अब डोर-टू-डोर सर्वे में अनेक लोग संक्रमित पाए जाने लगे हैं।

जल्द ही पंजाब में चुनाव होने वाले है अब मुख्यमंत्री अमरिंदर साहब की लाचारी देखिये कुछ दिन पहले डीजीपी को निर्देश दिए कि कोरोना के मद्देनजर लगाई गई पाबंदियों को धता बताते हुए प्रदर्शन करने वाले किसानों से सख्ती से निपटा जाए,लेकिन अगले ही दिन जब किसानों ने नाक में दम कर दिया तो कैप्टन को यह कहना पड़ा कि वह आंदोलन को कमजोर नहीं होने देंगे।
 कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा एक दिन कहते हैं कि गांवों के हालात बिगड़ रहे हैं, लेकिन दो रोज बाद उन्हें ऐसा कुछ नहीं लगता, 
पहली लहर में कोरोना का असर कुछ कम हुआ था तब इन्ही कैप्टन साहब ने चुनावी फायदा लेने के लिए इन किसानो की पीठ थपथपा कर इस आंदोलन को और हवा दी और सियासत को गरमाया लेकिन वर्तमान हालातो में कैप्टन साहब के  लिए ये आंदोलन गले की हड्डी बनता जा रहा है ,कोरोना आपातकाल में प्रदर्शनो से लौट रहे किसान कोरोना को पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचा रहे है सरकार कोरोना चैन तोड़ने के प्रयास में लगी हुई है ,लेकिन ये प्रदर्शनकारी सरकार के प्रयासों को असफल किये जा रहे है। 

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फिर एक बार अपील कि है की किसान उनके गृह नगर पटियाला में प्रस्तावित तीन दिवसीय धरने-प्रदर्शन को टाल दें,लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस किसानों के 26 मई के राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शन का समर्थन कर रही हैं।अब ब्लैक फंगस भी महामारी बन चूका है ऐसे हालात में पंजाब सरकार की चिंता बढ़ना भी लाजमी है।
 


ये पंजाब का दुर्भाग्य है की जिस वक़्त महामारी से लड़ाई में सब को एकजुटता दिखाते हुए एक साथ खड़े होना चाहिये वही सब आपदा में मिले अवसर को खोना नहीं चाहते।दोहरी महामारी से जूझते राज्य में टेस्टिंग से लेकर वैक्सीनेशन तक सही ढंग से नहीं हो पा रही. 
वही सत्ता के घमसान में सब उलझे हुए है फिर वो चाहे सत्ता पक्ष हो चाहे विपक्ष।
  लेकिन राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस में जारी घमासान पर सबकी नजरे ज्यादा टिकी है क्योकी मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह और उनकी सरकार की कारगुजारी पर उंगली उठाने वाले अधिकतर नेता राहुल के करीबी माने जाते रहे हैं।  
 नवजोत सिंह सिद्धू,परगट सिंह और राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा भी राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं।।
बाजवा जब पंजाब कांग्रेस के प्रधान होते थे तब कैप्टन अमरिंदर सिंह उनके सामने चुनौतीया पेश करते थे.हालांकि,राहुल गांधी चाह कर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को रोक नहीं पाए थे और 2015 में उन्हें कैप्टन को पंजाब कांग्रेस का अध्‍यक्ष बनाना पड़ा था।बाजवा से प्रधानगी वापस लेने के बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेज कर इसकी भरपाई की थी। वहीं,रवनीत बिट्टू को यूथ ब्रिगेड से सांसद की टिकट दिलवाने में भी राहुल गांधी का ही हाथ था।आज यही नेता सीधे-सीधे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनौती दे रहे है। 
पंजाब कांग्रेस केअध्‍यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है कि पार्टी में सब कुछ जल्द ही सामान्य कर लिया जाएगा। पंजाब कांग्रेस में जो चल रहा है उससे पार्टी हाईकमान पूरी तरह से अवगत है। 

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