पिछले चार महीनो से चल रहे किसान आंदोलन पर सरकार और किसानो का रवैया बिल्कुल भी बदला हुआ नजर नहीं आता है। सरकार लगातार इसे दलालो/ बिचौलियो का आंदोलन बताती रही है और किसानो को गुमराह करने और उन्हें इस आंदोलन के लिए बहकाने के लिए इन दलालो को जिम्मेदार भी मानती रही है।
सरकार के दावों की सच्चाई
धान खरीद में पिछले सीजन में एक घोटाला सामने आया था जिसमे पंजाब में कुल उपजे धान से 20 लाख टन ज्यादा धान की बिक्री हुई थी,स्पष्ट है की दूसरे राज्यों से लाकर पंजाब के किसानो के नाम पर बिक्री की गयी थी और भुगतान प्रक्रिया भी इन दलालो के मार्फ़त होने के कारण इनकी कारगुजारियो को कोई पकड़ भी नहीं सकता था।
भटिंडा अनाज मंडी की घटना
करीब 5दिन पहले फूड व सप्लाई विभाग की विजिलेंस टीम द्वारा रेड के दौरान बिहार के दरभंगा से लाए गए करीब 22 हजार (एफआईआर में फिलहाल 8000) बैग गेहूं गोदामों के साथ खुले में पड़ी मिली थी .
जांच में पता चला कीआरोपी बिहार के दरभंगा जिले से गेहूं खरीदकर पंजाब में जाली किसानों के नाम पर फर्जी बिल बनाकर बेचने के फिराक में थे।
कोतवाली पुलिस को दिए बयान में मार्केट कमेटी के सचिव गुरविंदर सिंह ने बताया कि जसपाल सिंह, बलजीत राम व गौरी शंकर वासी डालमैंड राजस्थान, बिहार के दरभंगा से अलग-अलग ट्रको में करीब 1220 क्विंटल गेहूं बोरियों में भरकर लेकर आए थे। इस गेहूं को फर्म लक्ष्मी दाल एंड ऑयल कंपनी अनाज मंडी,फर्म बाबू/अशोक कुमार फर्म की और से जाली किसानों के नाम पर फर्जी बिल तैयार कर पंजाब के एमएसपी पर गेहूं को बेचा जाना था।
लूज गेहूं के 7 हजार बैग मिलाकर करीब 22 हजार बैग तक यह रिकवरी चली जाएगी।
एएसआई गुरमुख सिंह ने बताया कि पुलिस ने तीनों ड्राइवरों को गिरफ्तार करने के बाद बिहार से आई गेहूं को गोदामों में अधिकारियों की देखरेख में स्टाेर करवा दिया है।
सरकारी खरीद शुरू होने से पहले ही मंडी में गेहू की ढेरियां लगी –
शुक्रवार को फूड व सप्लाई विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रमेश सिंगला ने दाना मंडी में रेड करके दो गोदामों से स्टोर किए गेहूं को पकड़ा था। एक रात पहले तक उक्त जगह पर करीब दर्जन भर मजदूर बंद पड़े बैगों की ढेरी लगा रहे थे। सूत्रों के अनुसार पिछले करीब 8 दिनों से गेहूं के बैग रोजाना रात को अनलोड हो रहे थे जबकि खरीद से तीन दिन पहले मंडी में गेहूं की ढेरी लग रही थी। लेकिन किसी ने इस बात को पूछने या जानने की हिम्मत नहीं दिखाई कि यह गेहूं कहां से आया है।
कितना बड़ा घोटाला –
बिहार व दूसरे राज्यों से फर्जी बिलों पर 1100 रुपए प्रति क्विंटल तक गेहूं की खरीद के बाद पंजाब में एमएसपी पर इसे बेचकर यह माफिया बड़ा मुनाफा अंदर करता है जिस पर सरकार का कोई कंट्रोल नजर नहीं आ रहा है। प्रति क्विंटल 220 रुपए भाड़ा जोड़कर भी यह माफिया प्रति क्विंटल 600 से 655 रुपए मुनाफा कमाता है जो प्रति ट्रक करीब 2.50 से 2.68 लाख पहुंचता है।
अनाज सप्लाई के लिए लोकल दलाल दूसरे राज्यों के दलालों के संपर्क में रहते हैं जो उनके लिए सस्ती फसल का इंतजाम करते हैं। पैसों की डिलीवरी के बाद दलाल वहां से फसल का लदान कर जाली बिल्टी व बिलों पर इन्हे पंजाब पहुंचाने का इंतजाम भी करते है।
इस गेहूं के फर्जी बिल पर कीमत करीब-करीब एमएसपी के आसपास ही लिखी जाती है ताकि किसी को इस पर शक नहीं हो।
प्रति क्विंटल 215 से 220 रुपए तक भाड़ा खर्च के बाद बठिंडा में यह गेहूं 1300 से 1320 तक पहुंचती है जिसमें अनलोडिंग का कुछ खर्च और जुड़ जाता है।
इसके बाद पंजाब में एमएसपी 1975 के भाव पर इस सस्ती गेहूं को बेच दिया जाता है। जिसमें 655 रुपये तक का मोटा मुनाफा दलाल कमाते हैं।
किसानो के खातों में इनका लेखा –
इस फसल को लोकल किसानों के एकाउंट में जोड़कर खपा दिया जाता है तथा अधिकांश समय किसानों को कानों कान खबर नहीं होती, क्योंकि वह फसल बिक्री की रकम पर अधिक ध्यान नहीं देता है.
रखवाली के लिए पहरा दे रहे भाकियू एकता डकौंदा के किसान-
वीरवार देर रात मंडी में बिहार से सस्ता गेहूं के आने का खुलासा होने के बाद शुक्रवार सुबह ही भारतीय किसान यूनियन एकता डकौंदा ने पूरी टीम के साथ धरना लगा दिया तथा जमकर सरकार, प्रशासन व आढ़तियों के खिलाफ नारेबाजी की गई। किसान यूनियन के अनुसार फसल की पैमाइश तक वह जगह को नहीं छोड़ेंगे तथा शुक्रवार रात को भी सभी किसान उक्त गोदामों व खुली गेहूं के नजदीक सोए व कुछ सदस्य पहरा देते रहे।
केन्द्र सरकार का किसानो के समर्थन में सख्त रुख-
पंजाब में हजारो आढ़तिये है,जो सरकार से किसानो की फसल का पैसा उनके मार्फ़त ही भुगतान करने के लिए दबाव बना रहे थे,इस विषय को लेकर केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल से आढ़तीयो के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुलाकात भी की थी ,जिसमे पियूष गोयल ने स्पष्ट कह दिया था की केंद्र सरकार की खरीद का भुगतान सीधे किसानो के खाते में ही किया जाएगा ,राज्य सरकार अपनी मर्जी सेआढ़तीयो से भुगतान करवा सकती है.
अब जब भटिण्डा मंडी का केस सामने आने के बाद ये स्पष्ट हो गया है की आढ़ती भुगतान की केंद्र सरकार की निति का विरोध क्यों कर रहे है।