20 जुलाई से उपभोक्ता सरंक्षण बिल 2019 लागु, इस बिल में उपभोक्ता राजा के रोल में.जाने उपभोक्ता के नए अधिकार.

20 जुलाई से उपभोक्ता सरंक्षण बिल 2019 लागु, इस बिल में उपभोक्ता राजा के रोल में.जाने उपभोक्ता के नए अधिकार.
बदलते वक़्त और बदलते बाजारों के साथ साथ उपभोक्ताओं के खरीदने का नजरिया भी बदल गया है,डिजिटल होते बाजारों के साथ साथ अब उपभोक्ता भी परम्परागत खरीदारी के स्थान पर डिजिटल खरीदारी की तरफ ज्यादा आकर्षित होता जा रहा है। इसलिए उपभोक्ताओं के साथ धोखा धड़ी के मामले भी बहुत बढ़ने लगे थे,बार बार आती शिकायतो तथा उपभोक्ताओं अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए पुराना उपभोक्ता सरंक्षण कानून किसी भी तरह से प्रभावी नहीं हो पा रहा था, इसलिए एक नए कानुन की आवश्कता महसुस की जा रही थी,जो उपभोक्ता को हर तरह से सुरक्षा प्रदान कर सके.
 
उपभोक्ता को सुरक्षा देने के लिए मोदी सरकार संसद में 8 जुलाई 2019 को उपभोक्ता सरंक्षण बिल 2019 लेकर आयी,जिसे 30 जुलाई 2019, को लोकसभा ने तथा 6 अगस्त 2019 राज्य सभा ने पास कर दिया। अब ये बिल 20 जुलाई 2020 से भारत में लागु करने का नोटफिकेशन जारी किया गया है। 
यह उपभोक्ता संरक्षण विधेयक,1986 का स्थान लेगा।यह विधेयक उपभोक्ता के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करता है एवं दोषपूर्ण सामान या सेवाओं में कमी के मामले में शिकायतों के निवारण के लिये एक व्यवस्थित    प्रणाली भी प्रदान करता है,इस कानुन में सबकी जिम्मेदारी तय की गयी है। 
उपभोक्ता की परिभाषा-
वह व्यक्ति उपभोक्ता कहलायेगा जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिये किसी वस्तु को हासिल करता है या कमर्शियल उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के ज़रिये किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल है।

20 जुलाई से उपभोक्ता सरंक्षण बिल 2019 लागु, इस बिल में उपभोक्ता राजा के रोल में.जाने उपभोक्ता के नए अधिकार.
उपभोक्ता के अधिकार –
     (1 )ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना जो जीवन और संपत्ति के लिये जोखिमपूर्ण हैं। 
    (2 ) वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक और मूल्य की उपभोक्ता को पुरी जानकारी का हक है, 
  (3 ) प्रतिस्पर्द्धा मूल्य पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना।
  (4 ) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की मांग करना,अथार्थ विक्रेता और उत्पादनकर्ता द्वारा किसी भी प्रकार से उपभोक्ता के अधिकारों का हनन किया जाता है तो वह मुआवजा पाने का हकदार है 
उपभोक्ता दर्ज करा सकता है पुरे भारत में कही भी शिकायत-
उपभोक्ताओं के नजरिए से यह बड़ी राहत है.पहले उपभोक्ता वहीं शिकायत दर्ज कर सकता था,जहां विक्रेता अपनी सेवाएं देता है,लेकिन अब वो अपनी शिकायत देश के किसी भी क्षेत्र में दर्ज करवा सकता है.
उदहारण आप ने दिल्ली से कोई सामान खरीदा और उसे लेकर आप मुंबई चले गए,सामान में कोई कमी होने पर पहले उस कमी की शिकायत दिल्ली में ही हो सकती थी, लेकिन नए कानून अनुसार आप मुंबई में भी शिकायत दर्ज करवा सकते है।
 इसके अलावा कानून में उपभोक्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी सुनवाई में शिरकत करने की इजाजत है. इससे उपभोक्ता का पैसा और समय दोनों बचेंगे.
उत्पाद की ज़िम्मेदारी (product liability )-
उत्पाद के निर्माता,या विक्रेता (इसमें अब e commerce कंपनीया भी सम्मलित की गयी है) की ज़िम्मेदारी है की वह किसी खराब वस्तु या सेवा के कारण होने वाले नुकसान या क्षति के लिये उपभोक्ता को मुआवज़ा दे। मुआवज़े का दावा करने के लिये उपभोक्ता को विधेयक में उल्लिखित खराबी या दोष से जुड़ी कम-से-कम एक शर्त को साबित करना होगा।
उत्पादनकर्ता की जवाबदेही तय की गयी –
 उत्पादनकर्ता की जवाबदेही तय की गई है वस्तु में खामी या खराब सेवाओं से अगर उपभोक्ता को नुकसान होता है तो उसे बनाने वाली कंपनी को हर्जाना देना होगा.
उदहारण आपने कोई प्रेसर कुकर खरीदा औरउसको बनाने में कमी के कारण वो फट जाता है और उससे उपभोक्ता को चोट पहुँचती है,पहले इस तरह के केस में उपभोगकर्ता को केवल कुकर की लागत मिलती थी,और इस प्रकार के केस सिविल कोर्ट मे दर्ज होते थे,अब उत्पादनकर्ता को वस्तु में कमी के कारण उपभोक्ता को चोट पहुंचने पर हर्जाना देना पडेगा.
ई-कॉमर्स कंपनियों की जवाबदेही- 

20 जुलाई से उपभोक्ता सरंक्षण बिल 2019 लागु, इस बिल में उपभोक्ता राजा के रोल में.जाने उपभोक्ता के नए अधिकार.
 “प्रोडक्ट की जवाबदेही अब बनाने वाले के साथ साथ सर्विस प्रोवाइडर और विक्रेताओं पर भी होगी. इसका मतलब है क‍ि ई-कॉमर्स साइट खुद को Aggregator बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं.”  ई-कॉमर्स कंपन‍ियों पर डायरेक्ट सेलिंग पर लागू सभी कानून प्रभावी होंगे. इसका मतलब है की ई-कॉमर्स कंपनी अब सिर्फ बिचौलिया ना होकर विक्रेता के रूप में रहेगी।
 अब अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसे प्लेटफॉर्म को विक्रेताओं के ब्योरे का खुलासा करना होगा. इनमें उनका पता, वेबसाइट, ई-मेल इत्यादि शामिल हैं.-
अब  ई-कॉमर्स फर्मों की ही जिम्मेदारी होगी कि वे सुनिश्चित करें क‍ि उनके प्लेटफॉर्म पर किसी तरह के नकली उत्पादों की बिक्री न हो.अगर ऐसा होता है तो कंपनी पर पेनाल्टी लगेगी यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर नकली उत्पादों की बिक्री के मामलो की लगातार शिकायत आ रही थी.
भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माना-
अब विज्ञापन वो ही दिखाना होगा जो वस्तु या सेवा की हकीकत है.
अब आप विज्ञापन का स्वरुप भी बदलता देखेंगे, झुठे और भ्रामक विज्ञापनो पऱ अब सरकार ने सख्ती लागु कर दी है.
उदहारण- dhan laxmi यंत्र से 21 दिनों में घर बैठे धन वृद्धि करे, जैसे विज्ञापनो पर अब कार्यवाही की जा सकती है, पहले कानून के आभाव में इस तरह के विज्ञापन धड़ल्ले से टीवी पर चलते थे और जनता को ठगने का कार्य करते थे,लेकिन नए कानून में अब कड़े जुर्माने व सजा का प्रावधान किया गया है.  
      उपभोक्ता सरंक्षण बिल 2019में दो तरह से कार्य प्रणाली का प्रावधान है. 
   1 केंद्र सरकार द्वारा गठित  केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA)
    2  ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन (Consumer Disputes Redressal Commissions -CDRCs) 
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA)-का कार्य क्षेत्र –
केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिये इस प्राधिकरण का गठन करेगी।
 ये प्राधिकरण उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन,अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को देखेगी 
महानिदेशक की अध्यक्षता में CCPA की एक जांच टीम (इनवेस्टिगेशन विंग) होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जाँच  कर सकती है।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) के कार्य- 
  (1)उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना और उपयुक्त मंच पर कानूनी कार्यवाही शुरू करना।
(2 ) जोखिमपूर्ण वस्तुओं की शिकायत पर वापिस मंगवाने या सेवाओं की वापिस करने के आदेश जारी करना,  तथा चुकाई जा चुकी कीमत की भरपाई करना और अनुचित व्यापार को बंद कराना।
(3 ) संबंधित विक्रेता /उत्पादनकर्ता /अधिकृत व्यक्ति या संस्था /प्रचार करने वाली कंपनी /पब्लिशर को झूठे या भ्रामक विज्ञापन को बंद करने या उसे सुधारने का आदेश जारी करना।
(4 )  और उन पर जुर्माना लगाना।
(5 ) खतरनाक और असुरक्षित वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रति उपभोक्ताओं को सेफ्टी नोटिस जारी करना।
भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माना 
CCPA झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिये उत्पादनकर्ता व अधिकृत व्यक्ति या संस्था पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है। दोबारा अपराध की स्थिति में यह जुर्माना 50 लाख रुपए तक बढ़ सकता है। उत्पादनकर्ता को दो वर्ष तक की कैद की सजा भी हो सकती है जो हर बार अपराध करने पर पाँच वर्ष तक बढ़ सकती है।
CCPA भ्रामक विज्ञापनों के अधिकृत व्यक्ति या संस्था को उस विशेष उत्पाद या सेवा को एक वर्ष तक  अधिकृत करने  से प्रतिबंधित भी कर सकती है। एक बार से ज्यादा बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। हालाँकि ऐसे कई अपवाद हैं जब अधिकृत व्यक्ति या संस्था को ऐसी सज़ा का भागी नहीं माना जाएगा।
ज़िला,राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन(Consumer Disputes RedressalCommissions -CDRCs) ये उपभोक्ताओं से प्रत्यक्ष जुडी संस्था होगी जिसमे उपभोक्ता अपने अधिकारों के हनन पर शिकायत कर मुआवजे की मांग कर सकता है.ये एक साधारण उपभोक्ता की पहुंच वाली संस्था होगी। 
इस फोरम पर  उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत दर्ज़ करा सकता है:
      (1 )अनुचित और प्रतिबंधित तरीके का व्यापार
      (2 ) दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएँ
      (3 ) अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना
      (4 ) ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिये पेश करना जो जीवन और सुरक्षा के लिये जोखिमपूर्ण हो सकती हैं। 
   ज़िला,राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन (Consumer Disputes Redressal Commissions -CDRCs) का क्षेत्राधिकार
इस संस्था को तीन रूपों में पेश किया गया है-जिला स्तर,राज्य स्तर,राष्ट्रीय स्तर 
ज़िला CDRC उन शिकायतों के मामलों की सुनवाई करेगा जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक न हो। 
राज्य CDRC उन शिकायतों के मामले में सुनवाई करेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक हो,लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो। 
10 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत की वस्तुओं और सेवाओं के संबंधित शिकायतें राष्ट्रीय CDRC द्वारा सुनी जाएंगी।
अनुचित कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय CDRCs में फाइल की जा सकती है। ज़िला CDRC के आदेश के खिलाफ राज्य CDRC में सुनवाई की जाएगी। राज्य CDRC के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय CDRC में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।
अब दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं की ज़िम्मेदारी का प्रावधान होने में उपभोक्ताओं को ज्यादा छान-बीन करने में अधिक समय खर्च करने की ज़रुरत नहीं होगी।तथा नकली व झुठे विज्ञापनो पर शिकंजा कसने के कारण उपभोक्ता के सामने उत्पाद की हकीकत होगी। इसके अलावा अब ऑनलाइन व्यापार में भी बीच की कड़ी का काम करने वाली संस्थाए उपभोक्ता के प्रति जिम्मेदारी से कार्य करेगी। 

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