भारत का चीन को एक और जोरदार झटका R C E P में साथ आने से इंकार.

मोदी  जिनपिंग
रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (R C E P) एक ऐसा नाम जो चीन को सबसे ज्यादा परेशान कर रहा है , कारण भारत को अप्रत्यक्ष रूप से व्यापारिक मोर्चे पर घेरने की चीन की इस पुरानी चाल पर भारत ने फिर से पानी फेर दिया है। 
रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) जिस पर चीन समेत करीब 15 देशों ने  पिछले साल हस्ताक्षर कर दिए थे, लेकिन भारत ने इस पर हस्ताक्षर से इंकार कर दिया था.
  हालांकि चीन ने उस वक़्त कहां था की भारत अगर बाद में चाहे तो इसमें शामिल हो सकता है.
ये एक मुक्त व्यापार समझौता है, जिसमे एक दूसरे देशो के बीच व्यापार में कई तरीके की छूट देने और टैरिफ समेत कई अन्य तरीके की छूट देने की योजना है। 
रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी (RCEP)आसियान देशों (ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, विएतनाम) और इनके प्रमुख एफटीए सहयोगी देश चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड देशो का एक ग्रुप है।
  इस ग्रुप का  निर्माण अगस्त 2012 में किया गया था,भारत भी इस ग्रुप में सम्मलित था 
 लेकिन इस पार्टनरशिप से पार्टनर देशों से आने वाले सामान को टैरिफ फ्री करने के नुकसान को देखते हुए ऐन मौके पर इससे बाहर होने का फैसला किया था. वर्तमान में भारतीय निर्माताओं की स्थिति और अन्य देशो के साथ मुकाबले को देखते हुए भारतीय बाजार और व्यापार को जिन्दा रखने के लिए भारत ने इस पाटर्नरशिप से हाथ वापिस खींच लिए थे। 
 विश्लेषकों के अनुसार अगर भारत इस समझौते में शामिल होता तो चीन से आने वाला सामान और सस्ता हो जाता और भारतीय बाजार में चीनी सामान की बाढ़ आ जाती. 
इससे घरेलू उधोग बुरी तरह से प्रभावित होता और बर्बादी  की कगार पर पहुंच जाता। 
 हालांकि भारत को भी चीन में सामान बेचने की छूट मिलती लेकिन दिक्कत ये है कि भारत का सामान चीन में मुकाबला बहुत मुश्किल से कर पाता क्योकि वर्तमान में भी भारत चीन को अपना सामान बेचता कम है और खरीदता ज्यादा है. ऐसे में ये समझौता चीन के लिए ज्यादा फायदेमंद है
दूसरी बात,एक अकेला चीन ही नहीं आसियान देशों के साथ पहले से ही भारत का व्यापार घाटा (यानी खरीद ज्यादा, बेचना कम ) बहुत ज्यादा है. तमाम तरह की आर्थिक छूट देने से भारत का इन देशों के साथ व्यापार घाटा और बढ़ जाएगा, ये भारत के लिये बहुत नुक्सान दायक स्थिति होगी। 
 विश्लेषकों का कहना है कि चीनी वस्तुओं के लिए एकदम से पूरा भारतीय बाजार खोलना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा
क्योकी भारतीय व्यापारी का आज भारत में भी चीन से मुकाबला है, ऐसे में चीन को और छूट देना भारतीय व्यापार की हत्या करने के समान होगा। इन्हीं चिंताओं के मद्देनजर भारत इस समझौते में शामिल नहीं हुआ था। 
 आरसीईपी की जून महीने में हुई बैठक में जोर देकर कहा गया था कि इसके दरवाजे भारत के लिए खुले हैं लेकिन भारत ने एक बार फिर इनकार कर दिया.
 और अब इस बात पर विराम लगा दिया है की और किसी भी तरह के मोल भाव की गुंजाइस नहीं है। 
इस इंकार से सबसे ज्यादा चीन बौखलाया हुआ है,क्योकी उसका इस पाटर्नरशिप रूपी जाल को बिछाना काम नहीं आ रहा,उसकी पैनी नजर भारत के बाजार पर थी ,लेकिन सरकार ने देश हित में इस ऑफर को एक बार फिर ठुकरा दिया है।  
 कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि लद्दाख में चीन से जारी तनाव और कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर भारत आरसीईपी में शामिल होने के अपने फैसले पर फिर से विचार नहीं करेगा.
गलवान घाटी में तनाव की घटना के बाद भारत किसी भी ऐसे व्यापारिक समझौते में शामिल नहीं होगा जिससे चीन का दबदबा बढ़े .
नुक्सान के बारे में बड़ी बड़ी बाते करके डराने की कोशिश-

चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस पर एक बहुत बड़ा लेख लिखा है जिसमे भारत को अप्रत्यक्ष  रूप से इससे होने वाले नुक्सान के बारे में बड़ी बड़ी बाते करके डराने की कोशिश की है -भारत को आरसीईपी से बाहर रहने के लिए चीन का बहाना नहीं बनाना चाहिए. अखबार ने लिखा है कि इन खबरों से ये चिंता बढ़ जाती है कि भारत और चीन की सेना के बीच भले ही तनाव कम करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन भारत रणनीतिक और आर्थिक मामलों में चीन के खिलाफ दुश्मनी निभाना जारी रखेगा.
ग्लोबल के अनुसार भारत में मोदी सरकार के आरसीईपी से बाहर होने के फैसले को लेकर पहले से ही बहस छिड़ी हुई है. कई लोगों का तर्क है कि इससे बाहर होकर भारत एशिया-प्रशांत की बड़ी आर्थिक ताकतों के साथ साझेदारी मजबूत करने का एक बड़ा मौका खो देगा. इसके साथ ही भारत अपने दूरगामी आर्थिक विकास के रास्ते को भी बन्द  कर देगा.
टाइम्स ने भारत को नसीहत देते हुए कहा है कि भारतीय नेतृत्व को अपने दूरगामी हितों को देखने के लिए ज्यादा राजनीतिक साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है. मैन्युफैक्चरिंग के भविष्य के लिए उसे क्षणिक राजनीतिक नुकसान सहने के लिए भी तैयार होना चाहिए.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, जून महीने में हिंसक संघर्ष के बाद से भारत की कूटनीति आवेश से प्रेरित अतार्किक चरण में पहुंच गई है. भारत चीन के साथ अपने संबंधों में इसी भावनात्मक पहलू के साथ आगे बढ़ रहा है. आरसीईपी इसका ताजा उदाहरण है. अगर भारत इस अतार्किक रवैये के साथ आगे बढ़ता है तो इससे ना केवल पूरे क्षेत्र के हितों को नुकसान पहुंचेगा बल्कि इससे उसको भी आने वाले वक्त में फायदा नहीं होगा. चीन भारत का दुश्मन नहीं है और ना ही वह भारत का दुश्मन बनेगा. भारत का असल दुश्मन वह खुद ही बन रहा है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, अपनी अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए भारत को खुद को दुनिया से अलग-थलग करने के बजाय एक बड़े आर्थिक दायरे में शामिल करना चाहिए. भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बढ़ने की वजह से पहले से ही मुक्त व्यापार व्यवस्था चुनौतियों का सामना कर रही है, ऐसे में आरसीईपी इस क्षेत्र में एक बड़ा आर्थिक अवसर उपलब्ध करा सकता है. भारत के आर्थिक विकास के चरण को देखते हुए बहुपक्षीय मंच उसके लिए लाभदायक साबित होंगे.
ग्लोबल टाइम्स ने अंत में सलाह दी है कि भारत को दुनिया और एशिया में अपने दर्जे और अपने दूरगामी राष्ट्रीय हितों का मूल्यांकन ठीक से करना चाहिए. जब ताकतवर पड़ोसी देश से सामना हो रहा हो तो भारत को अपनी स्थिति का अच्छी तरह आकलन करना चाहिए. भारत को राष्ट्रवाद भड़काने और चीन को हर बुरे हालात के लिए जिम्मेदार ठहराने के बजाय अपने आर्थिक और रणनीतिक हित पूरे करने के लिए चीन के प्रति दुश्मनी कम करनी चाहिए. साभार न्यूज़ टुडे 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *