अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा ट्वीट कर ताइवान की राष्ट्रपति को बधाई देना चीन को रास नहीं आया .चीन ने दी अमेरिका को अंजाम भुगतने की धमकी .

 अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा ट्वीट कर ताइवान की राष्ट्रपति को बधाई देना चीन को रास नहीं आया.चीन ने दी अमेरिका को अंजाम भुगतने की धमकी.


अमेरिका और चीन वैसे तो आर्थिक मोर्चे पर एक दुसरे के खिलाफ कई सालो से जमकर प्रहार कर रहे है,कोरोना के चीन से पैदा होने और इसकी चपेट में सबसे ज्यादा अमेरिका के आने के बाद से ये प्रहार और तेज व लगातार हो रहे है 

अमेरिका इस कोरोना के लिए सीधे सीधे चीन को जिम्मेदार मानता है ,और चीन इस पर तरह तरह की कहानीया बना अपने आप पर लगे आरोपों से बचने का प्रयास करता रहता है और अपने आप को भी इससे प्रभावित बता रहा है ,इस युद्ध में अमेरिका ने चीन की सबसे बड़ी कंपनी huwai को सप्लाई बंद कर  दी है .
         अमेरिका ने किया चीन की मुख्य कंपनी का हुक्का पानी बंद,कोरोना के बदले अमेरिका का चीन को रिटर्न गिफ्ट. जानने के लिए क्लिक करे.

 अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा ट्वीट कर ताइवान की राष्ट्रपति को बधाई देना चीन को रास नहीं आया .चीन ने दी अमेरिका को अंजाम भुगतने की धमकी.

                                                                                                                                                   अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो

अमेरिका ने  फिर चीन को चिढ़ाते हुए एक ट्वीट किया इस बार अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने एक ट्वीट कर चीन की दुखती रग पर हाथ रख दिया ,इस ट्वीट में ताइवान की राष्ट्रपति के तौर पर विजयी डॉ.साई इंग वेन को दूसरे कार्यकाल के लिए बधाई देते हुए कहा की ताइवान का फलता-फूलता लोकतंत्र पूरी दुनिया और क्षेत्र के लिए एक प्रेरणा रहेगा और राष्ट्रपति साई के नेतृत्व में ताइवान के साथ हमारी साझेदारी और मजबूत होगी.

 अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा ट्वीट कर ताइवान की राष्ट्रपति को बधाई देना चीन को रास नहीं आया .चीन ने दी अमेरिका को अंजाम भुगतने की धमकी.  ताइवान की राष्ट्रपति डॉ.साई इंग वेन

इस से चीन इतना बौखला गया की उस ने अमेरिका को अंजाम भुगतने तक की धमकी दे डाली 

 अगर कोई देश ताइवान का समर्थन करता है तो चीन उसे धमकाने लगता है .

 चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्री ने ताइवान क्षेत्र की स्थिरता और शांति के साथ-साथ अमेरिका-चीन के संबंधों को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया है. हम इसके खिलाफ जरूरी कार्रवाई करेगे और अमेरिका को इसका अंजाम जरूर भुगतना पड़ेगा .

 चीन1949 में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद से ही ताइवान परHong Kong की तरह ‘एक देश, दो व्यवस्था’ लागू करना चाहता है और ताइवान पर अपना दावा करता है.जबकी ताइवान खुद को स्वतंत्र और संप्रभु मानता है,चीन तो बलपूर्वक ताइवान पर कब्जा करने की धमकी भी देता रहता है .

ताइवान की वर्तमान  राष्ट्रपति साई इंग वेन ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र  के तौर पर देखती हैं. वह कहती  हैं कि ताइवान’वन चाइना’ का हिस्सा नहीं है.

उन्होंने कहा,“हम ‘एक देश, दो व्यवस्था’वाली दलील के नाम पर चीन की गुलामी कभी नही स्वीकार नहीं कर सकते इससे ताइवान का स्टेटस कम कर दिया जाएगा . 

उन्होंने पद की शपथ लेते ही पहले भाषण में  कहा की हमने कब्जे और आक्रामकता के दबाव का सफलतापूर्वक विरोध  किया है.हम तानाशाही से लोकतंत्र की तरफ आगे बढ़ते रहे है ,एक वक्त था जब हम पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ गए थे लेकिन तमाम चुनौतियों के बावजूद हमने हमेशा लोकतंत्र और स्वतंत्रता के मूल्यों को जिंदा रखा .

ताइवान की राष्ट्रपति के बयान के कुछ समय  बाद चीन के ताइवान मामलों के विभाग ने कहा, बीजिंग दोनों पक्षों के लोगों के साथ मिलकर विकास के लिए काम करता रहेगा लेकिन ताइवान को चीन से अलग करने वाली किसी भी कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा .चीन का कहना है वह ताइवान की किसी भी रूप में आजादी के लिए कोई जगह नहीं छोड़ेगा  .

 वर्तमान समय में ताइवान की तारीफ़ पुरा विश्व कर रहा है कारण कोरोना  महामारी के खिलाफ युद्ध  में उसने जिस तरह की भूमिका निभाई है वो पुरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन गयी है.वही चीन कोरोना वायरस पर गैर जिम्मेदाराना रवईये को लेकर दुनिया भर में आलोचना झेल रहा है.ताइवान ने बिना लॉकडाउन और सख्त प्रतिबंधों को लागू किए ही कोरोना महामारी की लड़ाई जीत ली ताइवान में पिछले तीन हफ्तों से कोरोना का कोई नया केस सामने नहीं आया है.

इसी कारण कई देशो ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की सालाना बैठक में ताइवान को पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल करने की मांग की जिसका चीन ने विरोध किया.चीन ने ताइवान से लगते महासागर में सैनिकों की तैनाती भी बढ़ाई है.

 बीजिंग में ताइवान को सैन्य ताकत के बल पर चीन में मिलाने की मांग भी तेज हुई है. चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय में लिखा, ताइवान का फैसला आखिरकार शक्ति की प्रतिस्पर्धा से ही होगा  .
चीन का चिंग राजवंश वर्ष 1683 से 1895 तक ताइवान पर शासन करता रहा.1895 में जापान के हाथों चीन की हार के बाद ताइवान, जापान के हिस्से में आ गया.दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद अमरीका और ब्रिटेन ने   ताइवान को उसके सहयोगी और चीन के बड़े राजनेता और मिलिट्री कमांडर चैंग काई शेक को सौंप दिया कुछ सालों बाद चैंग काई शेक की सेनाओं को कम्युनिस्ट सेना से हार का सामना करना पड़ा.तब चैंग और उनके सहयोगी चीन से भागकर ताइवान चले गए और कई वर्षों तक15 लाख की आबादी वाले ताइवान पर उनका राज रहा। 1949 के ग्रह युद्ध के बाद से ही चीन ताइवान का विवाद  लगातार जारी है,चीन इसे अपने हिस्से के तौर पर प्रचारित करता रहा है  .

जब 1980 के दशक में चीन ताइवान के रिश्ते सुधरने लगे तो चीन ने ‘वन कंट्री टू सिस्टम’ के तहत ताइवान के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वो अपने आपको चीन का हिस्सा मान लेता है तो उसे स्वायत्ता प्रदान कर दी जाएगी.
लेकिन ताइवान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया साल 2000 में चेन श्वाय बियान ताइवान के राष्ट्रपति चुने गए जिन्होंने खुलेआम ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन किया.ये बात चीन को नागवार गुज़री और  फिर से दोनों देशो के रिश्तो में खटास आने लगी .
अमरीका ताइवान का सबसे अहम और एकमात्र दोस्त माना जाता रहा है.
दूसरे विश्व युद्ध से साल 1979 तक अमेरिका  और ताईवान  दोनों  के संबंध बहुत गहरे रहे .लेकिन  वर्ष 1979 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने चीन से रिश्ते मजबुत करने के चक्कर में ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए.
हालांकि तब भी अमरीकी कांग्रेस ने’ताइवान रिलेशन एक्ट’ पास किया जिसके तहत तय किया गया कि अमरीका,ताइवान को सैन्य हथियार सप्लाई करेगा और अगर चीन ताइवान पर किसी भी तरह का हमला करता है तो अमरीका उसे बेहद गंभीरता से लेगा.
जिमी कार्टर के बाद का दौर चीन और ताइवान दोनों ही के साथ अपने रिश्तों का संतुलन बनाए रखने की नीति पर रहा.
ताइवान को लेकर अमरीका और चीन के बीच सबसे ज़्यादा तनाव साल 1996 में रहा .ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव के समय अपना प्रभाव दिखाने के लिए चीन ने मिसाइल परीक्षण किए.

 जिसके जवाब में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने बड़े पैमाने पर अमरीकी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया जिसे वियतनाम युद्ध के बाद एशिया में सबसे बड़ा अमरीकी सैन्य प्रदर्शन कहा गया.

अमरीका ने ताइवान की ओर बड़े युद्धक अमरीकी जहाज भेजे और चीन को संदेश देने की कोशिश की कि ताइवान की सुरक्षा से अमरीका कोई समझौता नहीं करेगा.

आज के हालात में ताइवान के समर्थक देशो की संख्या बहुत ज्यादा है.वही चीन ने अपने दुश्मन देशो की संख्या में  इजाफा कर लिया है.आज चीन ताइवान पर कब्ज़ा करने की सिर्फ धमकी दे सकता है.लेकिन  हकीकत में वो भी यह जानता है ये बहुत मुश्किल होगा  .




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