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पिछले कुछ दिनों से भारत चीन के बीच लद्दाख क्षेत्र में तनातनी का माहौल है ,इसका मुख्य कारण भारत द्वारा अपने क्षेत्र में सड़क,हवाई परिवहन के ढांचे को मजबूती प्रदान करना है ,जो क्षेत्र थोड़े समय पहले तक चीन की पहुंच में आसानी से आ सकता था ,आज भारत ने सड़क और हवाई मार्ग का इतना ठोस ढांचा तैयार कर लिया है की ,बहुत कम समय में भारत की सेना वहां अपना मोर्चा संभाल सकती है ,ये बात विस्तारवादी मानसिकता वाले चीन के हजम नहीं हो रही,इसलिए वो सीमा क्षेत्र में तनाव पैदा कर रहा है .
भारत चीन के बीच हमेशा कुछ ना कुछ विवाद रहता ही है,चाहे पाकिस्तानी आतंकवादियों के पक्ष में चीन का खड़ा होना हो या पाकिस्तानी सरकार की अंतर्राष्ट्र्रीय मंच पर वकालात ,जब जब इस तरह का विवाद होता है तो भारत में चीन के सामान के विरोध में “चीनी सामान के बहिष्कार” का टैग जोर पकड़ता है .
लेकिन क्या हम हकीकत में ये सब कर सकते है,क्योकी चीन भारतीय अर्थव्यवस्था के बहुत से क्षेत्रों में बहुत गहराई तक अपनी जड़े जमा चुका है .
इस बात को बल देती है इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशंस से जुड़े थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट-
जिसमे भारतीय स्टार्टअप्स में 4 अरब डॉलर के चीनी तकनीकी निवेश का अनुमान लगाया गया है,और अकेले तकनीकी क्षेत्र में ही चीन से जुड़े निवेश में हाल के दिनों में वृद्धि देखने को मिली है .
भारत के मुख्य 30 बड़े (यूनिकॉर्न्स) व्यापारिक ग्रुप (1अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के स्टार्टअप्स) में से 18 में चीन का निवेश और तकनीक संचालित हैं .फरवरी में प्रकाशित इस रिपोर्ट में चीन के फंड से पोषित 92 प्रमुख स्टार्टअप की सूची दी गयी है
भारतीय कारोबारों में निवेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल प्रमुख चीनी फर्मों में अलीबाबा, टेनसेंट और बाइटडांस हैं.-
अलीबाबा ग्रुप ने बिग बास्केट में 25 करोड़ डॉलर,
पेटीएम डॉट कॉम में 40 करोड़ डॉलर
पेटीएम मॉल में 15 करोड़ डॉलर,
जोमेटो में 20 करोड़ डॉलर,
और स्नैपडील में 70 करोड़ डॉलर का रणनीति के तहत निवेश किया हुआ है
एक अन्य चीनी समूह टेनसेंट होल्डिंग्स ने बायजू में 5 करोड़ डॉलर,
ड्रीम 11 में 15 करोड़ ड़ॉलर,
फ्लिपकार्ट में 30 करोड़ डॉलर,
हाइक मैसेंजर में 15 करोड़ डॉलर,
ओला में 50 करोड़ डॉलरऔर स्विगी में 50 करोड़ डॉलर का अनुमानित निवेश किया हुआ है.
भारत जैसे विकासशील देश में किसी भी कंपनी में शुरुवाती दौर में बड़ा निवेश करना बड़ा जोखिम का काम होता है ,क्योकी बाज़ार बनाने में शुरुआत में बड़ा जोखिम होता है.और गेटवे हाउस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अधिकतर पूंजी पति -धनी व्यक्ति/ पारिवारिक कार्यालय हैं और वो 10 करोड़ डॉलर के जितना बड़ा जोखिम नहीं उठाना चाहते .
सरल भाषा में ये पूंजी पति परिवार बड़े जोखिमों वाले कार्य में ज्यादा निवेश करने में दिलचस्पी नहीं दिखाते है ,जबकी दुसरी और चीन की कम्पनीया जोखिमों में ज्यादा इन्वेस्टमेंट करने का रिस्क उठाने में नहीं हिचकचाती है .
अब आप देखे पेटीएम ने वित्त वर्ष 19 में 3,690 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया वहीं फ्लिपकार्ट को इसी साल 3,837 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था .
अलग अलग देशो में निवेश के अलग अलग कानून होते है, इन्ही निवेश की जटिलताओ के कारण चीनी कम्पनीया भारत में निवेश के कई रास्तो का इस्तेमाल करती है ,ये प्रत्यक्ष चीन से निवेश ना कर सिंगापुर, हांगकांग, मॉरीशस आदि देशो में स्थित अपने कार्यालयों का भारत में निवेश के लिए इस्तेमाल करती है उदहारण के लिए पेटीएम में अलीबाबा का निवेश अलीबाबा सिंगापुर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से किया गया है. ये भारत के सरकारी डेटा में चीनी निवेश के तौर पर दर्ज नहीं है.
बहुत सी कम्पनीयो में अकेले चीन के निवेशको का ही नहीं अपितु साथ में अन्य देशो व भारतीय व्यापारीयो का नियंत्रण भी होता है, देखने में ये भारतीय लगती है लेकिन मुख्य निवेश कर्ता में चीनी कम्पनीया होती है।
इसके अलावा मोबाइल डेटा और एनालिटिक्स प्लेटफ़ॉर्म ‘ऐप एनी’ की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, “भारत में शीर्ष ऐप डाउनलोड का 50 प्रतिशत हिस्सा चीनी कम्पनीयो का है .
यूसी ब्राउज़र, शेयरइट, टिकटॉक और विगो वीडियो आदि.” इन ऐप्स को भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रो में प्रयोग किया जाता है , सरल भाषा में भारत में जो ऍप डाउनलोड किये जाते है उनमे से 50 % चीन के ऍप होते है .
अकेले टिकटॉक के भारत में 20 करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं टिकटॉक की मूल कंपनी बीजिंग स्थित प्रौद्योगिकी फर्म बाइटडांस है.
सॉफ्टवेयर के साथ साथ हार्डवेयर क्षेत्र में भी चीन का दबदबा बहुत ज्यादा है ग्लोबल बिजनेस एनालिसिस फर्म ‘काउंटरपॉइंट रिसर्च’ के मुताबिक,”भारतीय स्मार्ट फोन बाजार में चीनी ब्रैंड्स की बाजार हिस्सेदारी 2019 की पहली तिमाही के दौरान रिकॉर्ड 66 प्रतिशत तक पहुंच गई.”चीनी फोन ब्रैंड Xiaomi, Vivo और Oppo भारत के घर-घर में जाने जाते है
इन सब के अलावा बहुत से आइटम किसी ब्रांड नेम के बिना भी चीन से भारत में लाकर बेचे जाते है इनमे,हार्डवेयर, इलेक्ट्रॉनिक आइटम और होम यूटिलिटी प्रोडक्ट आदी प्रमुख होते है ब्रांड नेम ना होने की वजेय से इनको पहचानना बहुत मुश्किल होता है .
ये तो एक महत्वपूर्ण क्षेत्र की बात है ,बहुत सी जगह लगभग पुरा कच्चा माल चीन से मंगवाकर भारत में उत्पादन किया जाता है, कच्चे माल के लिए हमारी चीन पर निर्भरता भी चीन को दादागिरी करने का बल प्रदान करती है .
आज दवा उत्पादन में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर तथा जेनरिक दवा उत्पादन में प्रथम स्थान पर है .
पर दवा उत्पादन के लिए प्रमुख API आज भी 85 % चीन से मंगवाना पड़ता है .आज भारत में अपार सम्भावनाओ के बावजूद सिर्फ सरकारी नीतियों के कारण भारत की चीन पर निर्भरता बढ़ती गयी , इस मौके का फायदा उठा चीन हमारी अर्थव्यवस्था की जड़ो में घुसपैठ करता गया.
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आज ही केंद्र सरकार ने बहुत अहम फैसले इस घुसपैठ को रोकने के लिए किये है, देश को स्वावलम्बी बनाने की दिशा में ये फैसले तो शुरुवात भर है.
सरकार के साथ साथ देश के नागरिको को भी “ लोकल के वोकल “बन देश के विकास में अपनी भागीदारी देनी होगी .
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