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स्वदेशी भारत और आत्मनिर्भरता,क्या आर्थिक युद्ध में 20 लाख करोड़ का पैकेज सफलता की दिशा में कदम
मोदी जी के 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा के साथ साथ आत्मनिर्भर बनने और “लोकल के वोकल”बनने के बारे में बात करने के बाद से ही देश में स्वदेशी और विदेशी को लेकर बहस छिड़ गयी है।
मोदी जी का ये सन्देश पुरे देश ने सिरों धारय किया है। लेकिन क्या ये सब इतनी जल्दी सम्भव है,स्वदेशी की मांग आज कोई नयी नहीं है ,वर्षो से इस पर आवाज उठती रही है,गोविंदा चार्य जी,राजीव दीक्षित जी आदी ने हमेशा” स्वदेशी लाओ विदेशी भगाओ”पर मोर्चा खोले रखा है।
देश का 40% उपभोक्ता भी अगर स्वदेशी पर ईमानदारी से सोच विचार कर ले तो लाखो करोडो नए रोजगार पैदा हो सकते है। देश के विकास की दर को ऊपर उठाया जा सकता है। जो आत्मनिर्भर होने की दिशा में बहुत बड़ा कदम होगा।
लेकिन ये आज के युग में इतनी जल्दी सम्भव नहीं हो सकता इसका मुख्य कारण आज का युग टेक्नोलॉजी का युग है। और इस क्षेत्र में भारत को अभी बहुत काम करना है और अभी हमारा मुलभुत ढांचा ही इसके लिए तैयार नहीं है।
उदहारण के तौर पर आप मेडिकल कम्पनीयो को ही ले ले,भारत विश्व में दवाई उत्पादन में तीसरे स्थान पर है,और जेनरिक दवाइयों के उत्पादन में विश्व में पहले स्थान पर है। लेकिन इसमें भी चीन का बहुत बड़ा योगदान रहता है इन दवाइयों को बनाने का कच्चा माल 85 % चीन से ही आता है। आप दवाई तो स्वदेशी बना रहे है लेकिन वो पुर्णतया स्वदेशी नहीं है। 1990 तक दवाईया बनाने का कच्चा माल API स्वयं भारत चीन को बेचता था,लेकिन आज चीन से खरीदना उसकी मज़बूरी हो गयी है।
इसका मुख्य कारण पुरानी सरकारो की गलत नीतिया है ,उन्होंने कभी देश में ऐसा माहौल ही नहीं बनने दिया,की देश आत्मनिर्भरता की और बढे। जो देश को आत्म निर्भर बनाने की ताकत रखता है वो है व्यापारी उसे तो सरकार हमेशा शक की निगाह से देखती रही है। इतनी अफसर शाही की व्यापारी काम काम गुलामी ज्यादा करता रहा।
चीन के आगे बढ़ने का मुख्य कारण सरकार की नीतियां जो देश को आगे बढ़ाने के मक़सद से ही बनाई गयीं,उन्होंने व्यापारी का हर लिहाज से ख्याल रखा,सस्ती जमीन,सस्ती बिजली,यातायात,मुलभुत ढांचा और सबसे जरूरी अफसर शाही पर लगाम रखी ।
अगर आप कोई फैक्ट्री लगाना चाहते है तो आज पुरे विश्व में सबसे ज्यादा आसान चीन में लगाना है। व्यापारिक दृष्टि से 7 चीज फैक्ट्री को चलाने में आदर्श मानी जाती है,चीन में वो 7 चीजे एक ही स्थान पर उपलब्ध है ,जबकि भारत में 3 चीज ही उपलब्ध होगी। जो व्यापारिक लिहाज से आदर्श तो नहीं कही जा सकती।
उत्पादन क्षेत्र में सबसे बड़ी जरुरत बिजली की होती है,और भारत में इसका टेरिफ उत्पादन क्षेत्र में सबसे ज्यादा है, इस कारण लागत बढ़ जाती है और अन्य देशो के मुकाबले हमारी चीज महगीं हो जाती है ये तो एक उदहारण है ऐसे और बहुत से कारण है।
स्वदेशी के नारे के साथ साथ स्वदेश में इसके लिए माहौल बनाना होगा।
बहुत सी चीजे विदेश से लेना देश की मज़बुरी है तो बहुत सी चीजों से आप देश को आत्मनिर्भरता की और ले जा सकते है। अर्थ व्यवस्था के नजरिये से देखे तो भारत के लिए चीन और अमेरिका दोनों ही दुश्मन है।
भारत और चीन के बीच का व्यापार
भारत चीन को बेचता है– उनमे कपास,तांबा, हीरा और अन्य प्राकृतिक रत्न आदी मुख्य चीजे है
भारत चीन से जो मंगवाता है– उनमे मशीनरी ,टेलिकॉम उपकरण ,बिजली से जुड़े उपकरण ,ऑर्गैनिक केमिकल्स यानी जैविक रसायन खाद आदी प्रमुख चीजे है।
भारत की चीन पर निर्भरता–भारत ने चीन पर अपनी निर्भरता कितनी तेजी से बढ़ाई है इसका अंदाजा आप खुद लगा ले साल 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया.इस तरह चीन अमरीका को पछाड भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया.2018 में भारत और चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. आज ये 100 अरब डालर को भी पार कर चुका है। लेकिन इस कारोबार के बढ़ने में भारत का फायदा कम और घाटा ज्यादा हुआ है आकड़ों के मुताबिक 2018 में 95.54 अरब डॉलर का व्यापार हुआ जिसमें .
भारत ने चीन को मात्र 18.84 अरब डालर का सामान बेचा
वही 76 .70 अरब डालर का सामान खरीदा।
अर्थ शास्त्र की भाषा में भारत को 57.86 अरब डालर का नुक्सान हुआ है। सरल भाषा में भारत ने 57 .86 अरब डालर का सामान चीन के व्यापारीयो से ज्यादा खरीदा है। जो किसी भी रूप में आदर्श नहीं कहाँ जा सकता और भारत के लिए ये चिंता का विषय भी है।
भारत के चीन में माल बेचने के प्रयास–ऐसा नहीं है की भारत ने इस खायी को पाटने की कोशिश नहीं की हो भारत 2014 के जिनपिंग दौरे से ही ये कोशिश कर रहा है की भारत चीन में और चीजे बेचे।
जैसे भारत विश्व में दवाई उत्पादन में तीसरे स्थान पर है ,वो दवाईया और ज्यादा बेच सकता है ,आईटी सेवाएं दे सकता है.खाद्यय पदार्थ जैसे चावल ,चीनी फल ,मांस सुती सामान आदी। 2018 में तय हुआ की भारत चीन को ग़ैर बासमती चावल, फ़िश मील यानी मछली का खाना और मछली के तेल,मिर्च और तंबाकू के पत्ते भी निर्यात करेगा।
भारत में चीन का निवेश –निवेश की बात करे तो चीन का भारत में निवेश भी बहुत बढ़ा है ,जबकी भारत का चीन में निवेश कोई विशेष नहीं रहा है। चीन के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक़ दिसंबर 2017 के आखिर तक चीन ने भारत में 4.747 अरब डॉलर का निवेश किया.वही भारत ने चीन में सिंतबर 2017 के आखिर तक 851.91 मिलियन डॉलर का निवेश किया है.
लेकिन चीन एक चालाक देश है वो कभी भी भारत की अर्थ व्यवस्था को तेजी पकड़ते नहीं देखना चाहेगा। टेक्नोलॉजी में भारत की चीन पर निर्भरता भारत के लिए चिंता का विषय है .
आप देखिये भारत जो चीजे चीन को बेचता है वो इतना महत्व नहीं रखती ,लेकिन जो चीजे भारत चीन से खरीदता है सब महत्व की है। जो सामान्य जीवन में भी बड़ा गहरा प्रभाव रखती है.
भारत को अगर आत्मनिर्भर बनना है तो .टेक्नोलॉजी पर बहुत जोर देना होगा.आप अगर देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते है तो चीन को टेक्नोलॉजी क्षेत्र में सबसे बड़ी चोट दे सकते है ,जिसके दम पर चीन उछलता है,टिकटोक जैसे बहुत से महत्वहीन सॉफ्टवेयर को छोड़ कर,अन्य सजावटी सामान को त्याग कर आप चीन पर निर्भरता को कम कर सकते है.जहां तक सम्भव हो आप चीन के सामान से बचने की कोशिश करे। देश अपने आप आत्मनिर्भरता की और चल पड़ेगा।
भारतीय बाजार में भारतीय व्यापारीयो का मुख्य मुकाबला चीन के व्यापारीयो से है.
चीन के साथ हो रहे आर्थिक युद्व में सरकार को तो व्यापारी वर्ग के साथ सहयोगात्मक निति अपनानी होगी ” सिंगल विंडो क्लेरियंस” जैसी पालिसी बनानी होगी,सरकार ने बहुत से कारगर कदम मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत उठाये है ,2 दिन पहले ही सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज में msme सेक्टर पर बहुत बड़ी निति घोषित की है जो इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है ,लेकिन अभी भी बहुत से कार्य बाकी है.
जन मानस को एक आर्थिक योद्धा की तरह भारतीय चीजों को प्राथमिकता देनी होगी। तब ही आपके सपनो का भारत अथार्थ आत्मनिर्भऱ भारत बनेगा।