विकास दुबे एनकाउंटर में जातिवाद का रंग दे विपक्ष द्धारा फायदा उठाने की कोशिशे तेज.

पण्डित विकास दुबे  जिस नाम से 2 JULY तक दुनिया अनजान थी ,आज सम्पूर्ण भारत में इस नाम की चर्चा है, 30 सालो तक अपने साम्राज्य को खड़ा रखने वाला नाम ,जिसका अंत बहुत भयानक तरीके से हुआ है। 
विकास दुबे
उज्जैन तक ये नाम बहुत खुंखार लग रहा था,लेकिन गिरफ्तारी और एनकाउंटर के बाद ये नाम तेजी से सहानुभूति लेता जा रहा है.खासकर उतर प्रदेश के ब्राह्मण समाज में
इस एनकाउंटर ने अब राजनैतिक रंग ले लिया है, 
इसे राजनैतिक रंग देने में कोई भी विपक्षी दल पीछे नहीं है और वो ब्राह्मण समाज को पीड़ित बता उससे सहानुभूति जता रहा है ,इसी कर्म में आज मायावती का ट्वीट सामने आया,इससे पहले अखिलेश इस मामले को लेकर योगी पर बार बार आरोप लगा रहे है व  पिछले 3 साल में ब्राह्मणो की हत्याओं के आकड़े पेश कर रहे है ,कांग्रेस ने भी इसको एक मौके के रूप में लिया है.
कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने ब्राह्मण चेतना परिषद नामक संस्था का गठन कर ब्राह्मणों के हित में आवाज़ उठाने का संकल्प कर लिया है.

 बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने राज्य सरकार से कोई ऐसा क़दम न उठाने की अपील की है जिससे कि ब्राह्मण समाज के लोग ख़ुद को भयभीत महसूस करें.जितिन प्रसाद ने मायावती के इस ट्वीट का “सम्मान करते हुए” उन्हें धन्यवाद दिया.

जितेन प्रसाद
जितेन प्रसाद
जितिन प्रसाद ने  ब्राह्मणों की हत्याओं की एक सूची ट्वीट की और सरकार से सवाल पुछा है  कि ‘उत्तर प्रदेश में इतनी ब्राह्मण हत्याओं का दोषी कौन’. हालांकि जितिन प्रसाद का कहना हैं कि ब्राह्मण चेतना परिषद लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए है, इसे विकास दुबे या किसी दूसरे अपराधी के साथ न जोड़ा जाए.

ट्विटर फोटो
कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णन तो इस मामले में राज्य सरकार पर काफ़ी तीखा हमला बोला  हैं और उन्होंने सीधे तौर पर राज्य सरकार को ‘ब्राह्मणों की हत्या करने वाली सरकार’ कह दिया.

मायावती ट्वीट 
लेकिन बीजेपी से कांग्रेस में आए पूर्व सांसद डॉक्टर उदित राज ने इस लड़ाई को जातिय रंग देते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर यह लिखकर इस बहस को एक क़दम और आगे बढ़ा दिया कि यदि विकास दुबे की जगह कोई ठाकुर होता तो क्या ऐसा ही व्यवहार होता?
एसआईटी और न्यायिक आयोग का गठन-
सरकार ने भी इस पुरे मामले पर इस मुख्य अभियुक्त विकास दुबे और उनके पांच साथियों के कथित एनकाउंटरों में मारे जाने की जांच के लिए एसआईटी और न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है,लेकिन अब ये मामला जातिगत राजनीति का बनता जा रहा है.
इस मामले को लेकर शोसल मीडिया पर बहुत तेजी से प्रति किर्या आ रही है बहुत सी तस्वीरें और वीडियो शेयर किए जा रहे है.
दरअसल, इस पुरे प्रकरण में विकास दुबे और उसके अपराधिक रेकार्ड से कोई सहानुभूति नहीं दिखा रहा
लेकिन विकास दुबे के साथ संबंध रखने के आरोप में जो दूसरे एनकाउंटर हुए हैं, इन सभी एनकाउंटर्स पर न सिर्फ़ सवाल उठ रहे हैं बल्कि जिनके एनकाउंटर किए गए हैं, उनमें से ज़्यादातर के ख़िलाफ़ पुलिस में कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है.
 यही नहीं,बारह साल के एक बच्चे की घुटनों के बल हाथ उठाकर खड़े होने की जो तस्वीरें आई हैं, उसने लोगों का ग़ुस्सा और बढ़ा दिया है.
 इस घटना के साथ विकास दुबे के पांच सहयोगियों की ‘एनकाउंटर’ में मौत को भी जातीय कोण से देखने की कोशिश हो रही है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हिन्दूवादी का ठप्पा तो लगा ही है,लेकिन विपक्ष  ठाकुरवादी होने के भी आरोप अक़्सर लगाते रहे हैं कैबिनेट में भी ब्राह्मणों की तुलना में क्षत्रियों की संख्या ज़्यादा है. नियुक्तियों और तैनातियों में भेद-भाव के आरोप लगते रहे हैं.
 
 जानकारों की माने तो ब्राह्मणों में नाराज़गी तो पहले से है और इस घटना से वह और बढ़ी है, लेकिन बीजेपी को इसका राजनीतिक नुक़सान तब होगा जब इस नाराज़गी को भुनाने के लिए कोई विपक्षी दल हो.अभी ये कहना बड़ा मुश्किल है कि नाराज़ होने के बावजूद ब्राह्मण वर्ग किसी दूसरी पार्टी के साथ चला जाएगा.”
 भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी इस घटना पर ब्राह्मणो की नाराजगी से इत्तेफाक नहीं रखते उनका कहना है की  इसका कोई राजनीतिक लाभ किसी को नहीं मिलने वाला है.
 उनके अनुसार अपराधी की कोई जाति नहीं होती है.अपराधी के साथ वैसा ही व्यवहार होना चाहिए जैसा कि हुआ है जो लोग इस पर राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है. ब्राह्मण समाज बीजेपी के साथ आज भी वैसे ही चट्टान की तरह खड़ा है, जैसे कि पहले खड़ा था
स्थानीय नेतृत्व के अनुसार विकास दुबे के मारे जाने के तरीके से ब्राह्मण समुदाय में उसके प्रति भारी सहानुभूति पैदा हुई है, लोग दबी जुबान से इस एनकाउंटर पर अंगुली उठा रहे है, 5 अन्य एनकाउंटर पर भी सवाल उठ रहे है,अगर बीजेपी नेताओ ने जल्दी ही इस स्थिति को नहीं संभाला तो आने वाले वक़्त में इसका नुक्सान उठाना पड सकता है ,क्योकी ये मामला दबने की बजाय दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है ,बाकायदा शोसल मीडिया पर इस प्रकरण में अभियान चल पड़ा है जहां बीजेपी के प्रति ब्राह्मणो का आक्रोश चरम पर दिखाया जा रहा है,विपक्षी दल के कार्यकर्ता सहानुभूति दर्शाते हुए इन पोस्टो को शेयर कर रहे है. 
 सरकार को जल्द से जल्द ब्राह्मण समाज को विश्वास में लेते हुए इस प्रकरण पर उपजे विवाद को समाप्त करने के प्रयास करने चाहिए,वर्ना बिहार चुनावो में भी इसका कुछ असर देखने को मिल सकता है।   

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