चीन की ‘वन बेल्ट,वन रोड’ परियोजना,जिसमे भारत को साथ लेने के चीन के सभी प्रयास अभी तक असफल रहे.

चीन की विस्तारवाद की भूख के कारण चीन आज लगभग हर मोर्चे पर घिरता जा रहा है.भौगोलिक रूप से आज उसका लगभग हर पड़ोसी के साथ सीमा विवाद चल रहा है,आर्थिक मोर्चे पर अमेरिका के साथ ट्रेड वार चल रहा है.
कोरोना के मुख्य जन्मदाता के रूप में चीन का नाम आने के बाद से उसके विरुद्ध पुरे संसार के जन मानस का एक स्वर में विरोध करना उसके लिए ज्यादा घातक साबित होने वाला है. 
चीन ने अपनी विस्तारवादी सोच के कारण संसार के हर कोने में पहुंच बनाने की कोशिश की है,इसके लिए उसने बहुत सी परियोजनाए चलायी है.

चीन की 'वन बेल्ट,वन रोड' परियोजना,जिसमे भारत को साथ लेने के चीन के सभी प्रयास असफल रहे.
 इनमे सबसे महत्वपूर्ण परियोजना ‘वन बेल्ट,वन रोड’ परियोजना जिसे ‘न्यू सिल्क रोड’ के नाम से भी जाना जाता है साल 2013में इसकी शुरुवात की गयी और इस योजना के तहत चीन एशिया और यूरोप में सड़कों और बंदरगाहों का जाल बिछाना चाहता है,जिससे चीन अपने सामान को दुनिया के बाज़ारों में आसानी से पहुंचा सके। 

 इसके लिए चीन ने पूर्वी एशिया से यूरोप,अफ्रीका,लातिन अमरीका तक विकास और निवेश की बड़ी परियोजनाओं की एक पूरी श्रृंखला पर काम शुरू कर रखा है

चीन की 'वन बेल्ट,वन रोड' परियोजना,जिसमे भारत को साथ लेने के चीन के सभी प्रयास असफल रहे.

इस परियोजना की शुरुआत के बाद से चीन अब तक अफ्रीका, दक्षिण पूर्वी और मध्य एशिया, यूरोप और लातिन अमरीका के 138 देशों को पावर प्लांट्स, गैस पाइपलाइंस, बंदरगाह, हवाई अड्डे बनाने और रेलवे लाइन बिछाने के नाम पर सैंकड़ों करोड़ डॉलर की रक़म क़र्ज़ या मदद के तौर दे चुका है. 
एक अनुमान के मुताबिक इस परियोजना में भाग लेने वाले देशों को461 अरब डॉलर का क़र्ज़ दिया जा चुका है.
इनमे ज्यादातर अफ्रीका के  देश हैं जो बेहद गरीब देश है,उन्हें बेहद जोख़िम वाले क़र्ज़दारों में गिना जाता है.
जानकार इसे कर्ज के बोझ तले दबा कर उनका शोषण करने की चीन की एक चाल मानता है,लेकिन उन गरीब देशो की भी अपनी मजबूरिया है,वर्तमान समय में विकास के लिए उन्हें धन चाहिए,जो चीन उन्हें उपलब्ध करवा रहा है,चीन की अपनी मजबूरिया है,उसे अपने व्यापार के लिए बाजार का विस्तार करना है,इसलिए वो ये जोखिम उठाने को मजबूर है.
लेकिन कोरोना काल में बहुत से देश अब कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और वे क़र्ज़ चुका पाने की स्थिति में नहीं हैं. 
 जी-20 देशों के समूह ने 73 देशों को क़र्ज़ चुकाने से साल 2020 के आख़िर तक की राहत देने का एलान किया था. चीन भी इस ग्रुप-20 देशों का हिस्सा है.लेकिन सोचने वाली बात है की 7 महीने की मोहलत के बाद क्या होगा। क्या चीन अपना कर्ज या उसकी क़िस्त ले पायेगा ?

 जानकारों की माने तो दान देना,चीनी संस्कृति का हिस्सा नहीं है.अब चीन इस धर्म संकट की स्थिति में फंस गया है.की वो क़र्ज़ की शर्तों में बदलाव करता या क़र्ज़ माफ़ी देता है तो इससे उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा.

और अगर चीन अपने क़र्ज़दारों पर भुगतान के लिए दबाव डालता है तो पहले से ही ‘न्यू सिल्क रोड’ प्रोजेक्ट को ‘क़र्ज़ का मकड़जाल’ बता रहे अंतरराष्ट्रीय आलोचकों की आलोचनाओं का चीन को सामना करना पड़ सकता है.

  आपको बता दे की इस परियोजना की शुरुवात से ही चीन में ही  इसकी चौतरफ़ा आलोचना होती रही है।

चीन द्वारा दिया गया ज़्यादातर क़र्ज़ अमरीकी डॉलर में है और ट्रेड वार में अमेरिका से उलझे चीन को कर्ज वापसी ना मिलने पर डॉलर की कमी महसुस हो सकती है.

 इसलिए चीन मजबूर होकर कुछ परियोजनाओं से आहिस्ता-आहिस्ता क़दम वापस खींच रहा है और कुछ अच्छे प्रोजेक्ट्स को ज़्यादा तवज्जो दे रहा है.

इस परियोजना में छह आर्थिक गलियारे-


1.चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
2. न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज
3. चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा
4. चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा
5. बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा
6. चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा

 चीन  इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा है.

दुनिया की 60 फीसदी जनता इस की जद में-

इस परियोजना से दुनिया की 60 फीसदी आबादी यानी 4.4 अरब लोगों पर चीन अपना जाल बिछाने की कोशिश कर रहा है.

भारत इस परियोजना के विरोध में –
दुनिया के बहुत से देशो का साथ मिलने के बावजूद भारत इसका लगातार विरोध करता आ रहा है। चीन ने भारत को साथ लेने के लिए बहुत से कूटनीतिक और आर्थिक प्रयास किये लेकिन सफल नहीं हो सका, इस बात से भी चीन बहुत नाराज है और गलवान घाटी विवाद के पीछे इसे भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है.
चीन की 'वन बेल्ट,वन रोड' परियोजना,जिसमे भारत को साथ लेने के चीन के सभी प्रयास असफल रहे.

  चीन पर करीब से नजर रखने वाले मानते है की लद्दाख क्षेत्र में भारत के सड़क निर्माण जो सीधे लाइन आफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर चीन की सीमा तक जाती है.भारत की ये स्ट्रेटेजिक सड़क चीन के विस्तारवादी एजेंडे को चुनौती है.चीन समझता है कि भारत ने ये सड़क उसके वन बेल्ट वन रोड इनिशिएटिव को चुनौती देने के लिए बनाई है.”

साल 2017 में ऐसा ही एक सीमा विवाद डोकलाम में हुआ था.इस मामले में चीन वन बेल्ट वन रोड के तहत अपना एक हाइवे भूटान से होकर बना रहा था.लेकिन तब भारत ने भूटान के साथ अपने ऐतिहासिक रिश्तों का इस्तेमाल करते हुए भूटान में ये प्रोजेक्ट रुकवा दिया था.”
इस परियोजना के कुछ हिस्से पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भी हैं और भारत इन्हें अपनी संप्रभुता पर चोट मानता है.और इस क्षेत्र को लेकर चीन को सदा ये भय बना रहता है की भारत कोई कार्यवाही नहीं कर दे ,

  ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना जिसे ‘न्यू सिल्क रोड’ के नाम से भी जाना जाता है, इसकी सफलता के लिए भारत का साथ कितना महत्वपूर्ण है चीन ये सब अच्छी तरह से जानता है की क्योकि भारत का बाजार आज विश्व मे सबसे बड़े बाजारों में गिना जाने लगा है, आज भारत का निर्यात व आयात बहुत तेजी से बढ़ रहा है, और भारत की साख आज पुरे विश्व में बढ़ी  है.

 जानकर ये भी मानते है की भारत यदि चीन की इन परियोजनाओं से नहीं जुड़ेगा तो इन परियोजनाओं का आर्थिक तौर पर फ़ायदेमंद होना बहुत मुश्किल होगा.
तेजी से बदलते घटनाक्रम में चीन की अखबारी धमकिया उसके गले की फ़ांस बनती जा रही है,मनोवैज्ञानिक   दबाव का उसका फार्मूला भारत के आगे फेल होता नजर आ रहा है.सरकार और देश की जनता जिस प्रकार से चीन को आर्थिक चोट पंहुचा रहे है ,ये चीन ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।
आज की परिस्थिति में चीन का युद्ध के मैदान में उतरना कही से भी संभव नहीं लगता, चीन अपनी पुरानी शैली  धमकियों से ही भारत पर दबाव बनाने के प्रयास में है.जिस पर भारत की प्रतिक्रिया से चीन बौखलाया हुआ, बैचेन और चिंता ग्रस्त है,क्योकि इतने बड़े बाजार में उसका हिस्सा कम होना शुरू हो गया है,जो चीन के आर्थिक विकास के लिए बहुत बड़ी मुश्किलें खड़ी करने वाला है.

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