“स्टैच्यू ऑफ यूनिटी “क्या चीन द्वारा निर्मित है ?जाने पुरी सच्चाई .

कोरोना और लद्दाख सीमा पर अपने गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के कारण भारत में लोगो का चीन के खिलाफ गुस्सा उबाल पर है,करोड़ो लोग “बॉयकॉट चाइना प्रोडक्ट्स”का अभियान शोसल मीडीया पर चला रहे है। 

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लेकिन कुछ लोगो द्वारा शोसल मीडिया पर एक अफवाह भी फैलायी जा रही है की “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी ” की मुर्ति भी चीन द्वारा निर्मित है उसका भी बायकॉट होना चाहिए.ये अफवाह सिर्फ सरकार का विरोध जताने के लिए लिखी जा रही एक झूठ है,और वास्तविकता से बिल्कुल परे है . 



ये बात सत्य है की सरदार पटेल की मूर्ति बनाने में थोड़ा योगदान चीन की एक कम्पनी का भी है,लेकिन ये सिर्फ मूर्ति के ऊपरी कवच तक ही सीमित है ।मुख्य शिल्पकार भारत ही है . 


 एकता,शक्ति और शांति का प्रतीक,”स्टैच्यू ऑफ यूनिटी “आजादी आंदोलन और बटवारें के बाद आजाद राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल के सम्मान स्वरूप में स्थापित एक प्रतीक चिन्ह है,सरदार पटेल को राष्ट्र निर्माता इसलिए कहां जा सकता है क्योकी इन्होने ही देश के सभी 562 रियासतों को भारत गणराज्य का निर्माण करने के लिए एकजुट किया। वह अपनी ताकत और दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते थे और उन्हें ‘आयरन मैन ऑफ इंडिया’ की उपाधि दी गई थी।


स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी.के निर्माण का विचार नरेंद्र मोदी जी के मन में सबसे पहले आया और उन्होंने 7 अक्टूबर 2010 को इसकी घोषणा  की परियोजना का नाम रखा गया,“गुजरात की देश को श्रद्धांजलि”।

स प्रतिमा का निर्माण 2014 में वडोदरा से 90 किलोमीटर दुर सरदार सरोवर बांध के पास साधु बेट द्वीप पर शुरू किया गया ये नर्मदा नदी के बीच  में एक स्थान है.

2011 में मोदीजी ने सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट का गठन किया था. इस ट्रस्ट का  काम देश भर से करोडो किसानों से खेती के काम में आने वाले पुराने और बेकार हो चुके औजारों के रूप में लोहा और मिट्टी संग्रहित करना था ,129 टन. इस लोहे और मिट्टी को मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया. इस प्रकार इस मूर्ति को देश की एकता के पर्याय के रूप में देखा गया और इसे नाम दिया गया ” स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी.”


ये मुर्ति विश्व की सबसे ऊंची मुर्ति है इसकी ऊंचाई है 182 मीटर है,जबकी विश्व प्रसिद स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी की ऊंचाई 93 मीटर ही है,रिकॉर्ड समय में इसका निर्माण पूरा होकर 31 अक्टुबर 2018 को इसका अनावरण भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर किया गया।


इस परियोजना की कुल लागत भारत सरकार द्वारा लगभग ₹3,000 करोड़ (US$438 मिलियन) रखी गयी थी,लार्सन एंड टूब्रो ने सबसे कम ₹2,989 करोड़ (US$436.39 मिलियन) की बोली लगाई जिसमें आकृति, निर्माण तथा रखरखाव भी शामिल था.


स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पद्मभूषण से सम्मानित 92 वर्षीय शिल्पकार राम वी. सुतार की कल्पना है और उन्होंने ही इस प्रतिमा को डिजाइन किया है.

राम वी. सुतार (Ram V. Sutar) मूल रूप से महाराष्ट्र के एक गांव (गोंदूर) के रहने वाले हैं.सैकड़ों मुर्तीयो के शिल्पकार राम वी. सुतार की एक रचना संसद भवन परिसर में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा भी है.इनके गुरु श्रीराम कृष्ण जोशी जी रहे है। 

सबसे पहले सरदार पटेल की 1949 में खींची गई एक तस्वीर के आधार पर काम शुरू किया. एक 18 फुट की डमी मूर्ति बनाई गई जिसे लोगों को दिखाया गया.सरदार पटेल के गांव में बात की गई.ऐसे 2 लोगों को भी वो मूर्ति दिखाई गई जिन्होंने असल में सरदार पटेल को देखा था.इन सभी लोगों से बातचीत और उनसे मिले रिऐक्शन्स केआधार पर सुतार ने 30 फुट की मूर्ति बनाई जिसे 182 मीटर का बनाना था.

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का कुल वजन 1700 टन है और ऊंचाई 522 फिट यानी 182 मीटर है. प्रतिमा अपने आप में अनूठी है. इसके पैर की ऊंचाई 80 फिट, हाथ की ऊंचाई 70 फिट, कंधे की ऊंचाई 140 फिट और चेहरे की ऊंचाई 70 फिट है

ये मुर्ति 3 लेयर में बनी है मुल ढांचा सीमेंट,रोड़ी क्रेसर से इसके ऊपर की लेयर स्टील की है और उसपर कांसा चढ़ा है जो प्रत्यक्ष में दिखायी देता हैकांसा 8 मिलीमीटर मोटा है. 


राम वी सुतार के मुताबिक स्टैच्यू ऑफ यूनिटी कोबनाने मे चार धातुओं का प्रयोग किया गया है. जिसमें तांबे के साथ-साथ जिंक, लेड और टीन शामिल है.इससे प्रतिमा हजारों साल तक खराब नहीं होगी. इस पर धूल,धूप,बारिश व जंग का भी कोई असर नहीं होगा.

सरदार पटेल को समर्पित मूर्ति की विशाल संरचना और विस्तृत डिजाइन के लिए जाना जाता है प्रतिमा की ऊँचाई का वजन और अन्य उपाय इस तरह से तय किए गए हैं कि यह प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के बीच भी अपने मूल स्वरुप में खड़ी रहे। यह प्रतिमा 220 किमी प्रति घंटे तक की हवा का सामना कर सकती है। यह रिक्टर पैमाने पर 6.5 तक भूकंप का सामना भी कर सकती है।


 चीन का योगदान –

सरदार पटेल जो शुरू से ही चीन के धुर विरोधी मानें जाते थे ,उनकी इस रचना में चीन का सहयोग सरकार ने ना लेकर,इसके ढांचा गत निर्माण कार्य को करने वाली लार्सन एंड टूब्रो ने मजबूरी में लिया था .

मूर्ति की ऊपरी परत कांसे से बनानी थी जिससे मूर्ति हजारो साल तक यु ही खड़ी रहे .

इसके लिए भारत में स्थित 4600 ढलाईधर को ऑफर दिया गया लेकिन सब ने असमर्थतता जतायी तब मजबूर होकर एलएंडटी को यह ठेका चीन की कंपनी को देना पड़ा,चीन में स्थित विश्व के सबसे बड़े ढलाईघर जियांग्जी टोकिन कंपनी (JTQ) को ये काम सौंपा गया.डिज़ाइन को रूप देने के लिए इस सब पर 22 हज़ार स्क्वायर मीटर कांसे की प्लेटें लगी है. 

स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी ऐसी ही 7 हज़ार प्लेटों से बनी है जिन्हें आपस में वेल्डिंग कर के जोड़ा गया है. 


शिल्पकार राम वी सुतार की कड़ी मेहनत और अनुभव का बेजोड़ नमूना है ये निर्माण,इसमें देश के हर कोने की मिट्टी की महक आती है इसमें किसानो केखून पसीने की मिली जुली रंगत दिखती है,ये एक शुद्ध भारतीय शिल्प है,सिर्फ ऊपरी परत में चीन के सहयोग से इसे चीन द्वारा निर्मित कहना उन करोड़ो किसानो,हजारो मजदूरों और शिल्पकार राम वी सुतार का अपमान है ,जिन्होंने देश को एक अनमोल धरोहर देने में अपना मह्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 

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